रूस में एक झील के किनारे तीन फकीरों का नाम बड़ा प्रसिद्ध हो गया था। लोग लाखों की तादाद में उन फकीरों का दर्शन करने जाने लगे। यह खबर सबसे बड़े ईसाई पुरोहित को लगी। उसे बड़ी हैरानी हुई। क्योंकि ईसाई चर्च तो कानूनन ढंग से लोगों को संत घोषित करता है, तभी वे संत हो पाते हैं।
तो प्रीस्ट बड़ा परेशान हुआ। और जब उसे पता चला कि लाखों लोग वहां जाते हैं, तो उसने कहा, यह तो हद हो गई! यह तो चर्च के लिए नुकसान होगा। ये कौन लोग हैं! इनकी परीक्षा लेनी जरूरी है। कहीं ये धर्म की हानि तो नहीं कर रहे , लोगों को बेवकूफ तो नहीं बना रहे , ओर अपना रसूख va पूछ bhi कम हो रही है, बहुत बड़ा नुकसान है ये तो
तो बड़ा प्रीस्ट एक मोटर बोट में बैठकर झील से उन लोगों के पास गया। जाकर वहां पहुंचा, तो वे तीनों झाड के नीचे बैठे थे। देखकर वह बडा हैरान हुआ। सीधे—सादे ग्रामीण देहाती मालूम पड़ते थे। वह जाकर जब खड़ा हुआ, तो उन तीनों ने झुककर नमस्कार किया, उसके चरण छुए।
उसने समझ गया कि बिलकुल नासमझ हैं। इनकी क्या हैसियत! उसने बहुत डांटा—, फटकारा कि तुम यहां क्यों भीड़— इकट्ठी करते हो? उन्होंने कहा, हम नहीं करते। लोग आ जाते हैं। आप उनको समझा दें कि न आए । प्रीस्ट ने पूछा कि तुमको किसने कहा कि तुम संत हो? वो तीनों बोले यही लोग कहने लगे। हमको कुछ पता नहीं है। प्रीस्ट ने पूछा तुम्हारी प्रार्थना क्या है? क्या बाइबिल पढ़ते हो? उन्होंने कहा, हम बिलकुल पढ़े—लिखे नहीं हैं।
प्रीस्ट ने पूछा तुम प्रार्थना क्या करते हो? क्योंकि चर्च की तो निश्चित प्रार्थना है। तो उन्होंने कहा, हमको तो प्रार्थना कुछ पता ही नहीं। हम तीनों ने मिलकर एक प्रार्थना बना ली है।
प्रीस्ट ने कहा तुम कौन होते हो बनाने वाले प्रार्थना? प्रार्थना तो तय होती है पोप के द्वारा। बिशप्स की बड़ी एसेंबली इकट्ठी होती है, तब एक—एक शब्द का निर्णय होता है। तुम कौन होते हो प्रार्थना बनाने वाले? तुमने अपनी निजी प्रार्थना बना ली है! भगवान तक जाना हो, तो जो रास्ता प्रीस्ट बताएंगे उन्हीं तय हुए रास्तों से जाना पड़ता है! खैर ये बताओ क्या है तुम्हारी प्रार्थना?
वे तीनों बहुत घबरा गए। कंपने लगे। सीधे—सादे लोग थे। तो उन्होंने कहा, हमने तो एक छोटी प्रार्थना बना ली है। आप माफ करें, तो हम बता दें। ज्यादा बड़ी नहीं है, बहुत छोटी—सी है।
प्रीस्ट ने कहा बताओ तो वो तीनों संत बोले
यू आर थी, वी आर थ्री , हैव मर्सी आन अस। तुम भी तीन हो, हम भी तीन हैं, हम पर कृपा करो। यही हमारी प्रार्थना है। उस पादरी ने कहा, कम अक्लो,जाहिलो अनपढ़ ग्वारो नासमझो, बंद करो यह बकवास। यह कोई प्रार्थना है? सुनी है कभी? और तुम मजाक करते हो भगवान का कि तुम भी तीन और हम भी तीन हैं?
प्रीस्ट ने कहा कि यह प्रार्थना नहीं चलेगी। आइंदा करोगे, तो तुम नरक जाओगे। तो मैं तुम्हें प्रार्थना बताता हूं आथराइज्ड, जो अधिकृत है।
उसने प्रार्थना बताई। उन तीनों को कहलवाई। उन्होंने कहा, एक दफा और कह दें, कहीं हम भूल न जाएं। फिर एक दफा कही। फिर उन्होंने कहा, एक दफा और। कहीं भूल न जाएं। उसने कहा, तुम आदमी कैसे हो? तुम कैसे संत हो? तो उन्होंने कहा, नहीं, हम कोशिश तो पूरी याद करने की करेंगे, एक दफा आप और दोहरा दें! उसने दोहरा दी
फिर पादरी वापस लौटा उसी बोट से । जब वह आधी झील में था, तब उसने देखा कि पीछे वे तीनों पानी पर भागते चले आ रहे हैं। तब उसके तो प्राण घबरा गए। उसने अपने माझी से कहा कि यह क्या मामला है? ये तीनों पानी पर कैसे चले आ रहे हैं? उस माझी ने कहा कि मेरे हाथ—पैर खुद ही काँप रहे हैं। यह मामला क्या है! वे तीनों पास आ गए। उन्होंने कहा, जरा रुकना। वह प्रार्थना हम भूल गए; एक बार और बता दो! उस पादरी ने हाथ जोड़े और कहा कि तुम अपनी ही प्रार्थना जारी रखो। हमारी प्रार्थना तो कर—करके हम मर गए, पर पानी पर चल नहीं सकते। तुम्हारी प्रार्थना ही ठीक है। तुम वही जारी रखो। वे तीनों हाथ जोड़कर कहने लगे कि नहीं, हमारी प्रार्थना ठीक नहीं है। आपने जो बताई थी, बड़ी लंबी है और शब्द जरा कठिन हैं। और हम भूल गए। हम अनपढ़ ग्वार लोग हैं। हम पर कृपा करो
ये तीन आदमी बिलकुल पंडित या संत नहीं हैं, विनम्र भोले— सीधे सादे लोग हैं। लेकिन एक स्वयं अनुभव घटित हुआ है। और स्वयं अनुभव के लिए किसी प्रकार की अधिकृत प्रार्थनाओं की जरूरत नहीं है। और स्वयं अनुभव के लिए कोई लाइसेंस्ट शास्त्रों की जरूरत नहीं है। और स्वयं अनुभव का किसी ने कोई ठेका नहीं लिया हुआ है। हर आदमी हकदार है पैदा होने के साथ ही परमात्मा को जानने का। वह उसका स्वरूपसिद्ध अधिकार है। वह मैं हूं यही काफी है, मेरे परमात्मा से संबंधित होने के लिए। और कुछ भी जरूरी नहीं है। बाकी सब गैर—अनिवार्य है।
जो जानकारी हम इकट्ठी कर लेते हैं, वह जानकारी हमारे सिर पर बोझ हो जाती है। वह जो भीतर की सरलता है, वो बोझ उसको खा जाता है , सरलता जो है वह खो जाती है।
वह अनुभव क्या है? वह अनुभव है, जहां बूंद सागर में खोती है, तो बूंद को जो अनुभव होता होगा! जैसे व्यक्ति जब समष्टि में खोता है, तो व्यक्ति को जो अनुभव होता है, उस अनुभव का नाम परमात्मा है।
परमात्मा एक अनुभव है, वस्तु नहीं। परमात्मा एक अनुभव है, व्यक्ति नहीं। परमात्मा एक अनुभव है, एक घटना है। और जो भी तैयार है उस घटना के लिए, , उस विस्फोट के लिए, उसमें घट जाती है। और तैयारी के लिए जरूरी है कि अपना अज्ञान तो छोड़े ही, अपना ज्ञान भी छोड़ दें। और जिस दिन ज्ञान— अज्ञान दोनों नहीं होते, उसी दिन जो होता है, उसका नाम परमात्मा है।