Saturday, 26 April 2025

साधु va शिष्य

एक बार एक साधु अपने
 शिष्यों के साथ बैठा हुआ
 था, उनसे बात कर रहा था।
उनमें से  एक शिष्य ने कहा 
की गुरु जी, हम आपसे 
आपके गुरु के बारे में 
जानना चाहते हैं ,उनका 
क्या नाम था,  ,कितना 
समय आप लोगों ने 
 साथ बिताया।साधु 
ने कहा  तुम्हे आश्चर्य होगा
 मेरा एक गुरु नहीं है । मेरे 
तो कहीं गुरु है , मैने जीवन 
में जिससे भी कोई अच्छी 
बात सीखी उसे मैने अपना 
गुरु मान लिया ,आज मैं 
तुम्हें अपने गुरुओं के बारे में
 बताता हूं, मेरा सबसे
 पहला गुरु है  एक औरत ,

एक बार  में जंगल  मैं
 पेड़ के नीचे विश्राम कर
 रहा था ऊपर पेड़ पर
 बैठे एक कबूतर ने मेरे 
ऊपर विष्ठा कर दी, मैंने 
उसको क्रोध में उसको 
पत्थर मारा, पत्थर उसे
 लगा ,वो चोट को सह 
नहीं सका  और  नीचे 
गिर गया,उसकी मृत्यु
 हो गई , कुछ देर बाद 
मुझे अपनी गलती का 
एहसास हुआ कि मैंने 
इतना क्रोध क्यों किया, 
अपने उस अशांत मन को  
शांत करने ,व अपने पाप के
 प्रायश्चित के लिए मैं जंगल 
में गांवों , में चलना शुरू कर 
दिया,कई दिनों तक  भूखा 
प्यासा  चलता रहा ,कई 
दिन चलने के बाद जब 
एक  शाम 
में थका हारा, भूखा 
प्यासा ,  एक घर के आगे 
रुका,उस घर का  दरवाजा 
खड़काया , अंदर से
 एक औरत बाहर आई 
मैंने उसे बोला कि मुझे
 कुछ जलपान करवा दो ,
उस औरत ने कहा आप 
पांच मिनट विश्राम करो 
में जल पान ले कर आती हूं 
  मेरे पति अभी  अभी खेत 
से आए हैं , उन्हें भोजन
 देना है ,वह अंदर गई  
और  वह भूल  गई की 
बाहर में भी इंतजार कर 
रहा हु , वह औरत पौने
 घंटे तक बाहर नहीं आई 
जब वह बाहर आई तो, 
मैंने उसे क्रोध से देखा 
और कहा  तुमने मुझे
 बहुत लंबा इंतजार 
करवाया, पति की सेवा
 ज्यादा जरूरी है या घर 
आए एक भूखे साधु  
 की, तो उसने बोला कि 
साधु महाराज  मेरे को  
इस तरह क्रोध से  मत 
देखो मैं कोई कबूतर नहीं 
हूं जिसे आप क्रोध से 
  देखोगे तो वह मर जाएगा
, मेरे पति सुबह 5:00 से 
 के खेत पर गए हुए थे 
 अभी शाम को 6.00 
बजे वापस थके हरे आए
 है ,में एक पतिव्रता औरत 
हु ,मेरा पहला कर्तव्य 
बनता है कि मैं उनकी 
सेवा करूं उन्हें जलपान .
दूं, खाना खा कर जब 
वह विश्राम करने लगे ,
तो में उनके पैर दबाने 
लग गई ,उनकी आंख 
लग गई  उनकी नींद  
पक्की हो जाए ,इस 
लिए में बीच में नहीं उठी
 , मेरा इरादा आपका 
निराधार करना नहीं  
था, में अपने बोले गए 
शब्दों के लिए माफी 
मांगती हु यदि उन्होंने 
आपको कष्ट पहुंचाया है 
पति की सेवा करते 
समय मेरे सहज ही 
दिमाग से निकल गया कि 
आप बाहर बैठे हुए हैं 
, क्षमा मांगती हूं साधु 
ने कहा कि नहीं तुम्हें 
क्षमा मांगने की जरूरत 
नहीं है इसमें तुम्हारी 
कोई गलती नहीं है मैं ही
 अपने क्रोध को नियंत्रित 
नहीं कर पाता हूं 
मैने उस औरत का 
अपना प्रथम गुरु
 मान लिया 
क्योंकि उस औरत से
  मुझे यह शिक्षा मिली कि अगर
 आप अपने रिश्तों  में 
अपने कर्तव्य के प्रति 
ईमानदार है तो आपको 
किसी भी प्रकार की 
तपस्या कि,या तप, 
बल, ध्यान की जरूरत 
नहीं है जो सिद्धि लोग
 कहीं वर्षो तक तपस्या 
करके प्राप्त करते हैं 
आप ईमानदारी से 
अपने कर्तव्य को 
निभाते हुए उस सिद्धि 
को प्राप्त हो जाते है

एक बार की  ओर 
बात है चलते-चलते मुझे 
रात हो गई मैं गांव में 
पहुंचा,में बहुत थक
 गया था  ,तो वहां मैं
 एक स्थान ढूंढने लगा
 जहां जाकर मैं विश्राम
 कर सकूं,  मुझे कोई 
स्थान मिल नहीं रहा था ,
तभी मैंने देखा कि एक 
व्यक्ति कुछ तोड़ रहा है ,
मैं उसके पास गया ,मैंने 
उससे पूछा कि क्या 
तुम मुझे आसपास 
कोई स्थान बता सकते 
हो, जहां में जाकर 
विश्राम कर सकूं ,तो 
उस व्यक्ति ने कहा 
कि पास में एक एक 
मंदिर है , परन्तु इस
 समय मंदिर बंद हो
 चुका है ,तो आप इस 
समय मेरे घर चलकर 
आराम कर सकते हो,
अगर आप को कोई 
आपत्ति  न हो तो
 क्योंकि , मैं पेशे से 
एक चोर हूं, साधु ने 
कहा मुझे इसमें कोई 
आपत्ति नहीं है, तुम्हारे 
घर आराम कर लेता 
हूं ,मैं वहां आराम करने 
गया ,मेरी वहां पर 
तबियत बिगड़ गई 
इसलिए मैंने तीन से
 चार दिन और  वहीं
 पर आराम किया ,
इस दौरान मैंने देखा 
कि वह रोज रात को 
चोरी करने जाता 
असफल हो जाता
लेकिन निराश नहीं 
होता था,  वह अगली 
रात को फिर भगवान 
के आगे माथा टेक कर 
प्रार्थना करता की  
 आज मुझे सफल जरूर 
करना ,वह पूरी लगन के 
साथ दोबारा चोरी करने
 चला जाता,हर बार 
असफल होता पर निराश 
नहीं होता , फिर  चौथे 
दिन उसने काफी बड़ा
 हाथ मार लिया ,और
 उस दिन वह  बहुत
 खुश था ,और अब 
 मेरी तबीयत भी  ठीक
 हो चुकी थी ,तो मैं
 जब  वहां से जाने 
लगा था ,तो मैंने
 उसे समझाया कि 
तुम यह गलत काम  
छोड़ दो, 
वह मान गया ,इस 
शर्त के साथ की में 
उसे कोई अच्छा काम 
दिला दूं में उसे ले कर
 राजा के पास गया , 
राजा को सारी बात
 बताई राजा चोर की 
ईमानदारी से खुश हुआ
राजा ने चोर से उसकी
 योग्यता पूछी, चोर ने 
कहा में राज्य में कहीं
 चोरी न हो ,उसका पुख्ता 
इंतजाम कर सकता हु, 
,व जासूसी जैसा कार्य 
बड़ी दक्षता से कर सकता 
हु , राजा ने ,  मंत्री को 
बोल कर उसे उसकी 
योग्यता के अनुसार 
कार्य पर लगवा दिया, 
फिर में वहां से चला गया
 ,उम्मीद करता हु वह
 अपना कार्य लगन va
 ईमानदारी se kr rha
 hoga 
 चोर  मेरा  दूसरा गुरु था  
जिससे मुझे सीखने को 
मिला कि जो भी कम 
करो पूरी लगन और 
ईमानदारी से करो  ,
 बहुत बार  असफलता
 मिलेगी ,परन्तु निराश 
नहीं होना ,अपने प्रभु 
पर विश्वास रखो और 
अगर आपको कभी
 जीवन में  अच्छा 
रास्ता चुनने का 
अवसर मिले तो 
उस अवसर को 
हाथ  से जाने मत  दो,

एक बार में एक तालाब 
के किनारे विश्राम कर
 रहा था मैंने देखा एक 
बहुत ही प्यासा कुत्ता 
वहां आया लेकिन वह 
बार-बार पानी के पास
 जाए, और फिर दूर हो 
जाए शायद वह  अपनी
 परछाई से डर रहा था, 
आखिर उससे अपनी 
प्यास बर्दाश्त नहीं हुई 
उसने पानी के अंदर 
अपना मुंह डाल दिया,
 जैसे  ही उसने मुंह पानी 
में डाला , उसकी परछाई 
टूट गई, और उसने शांति
 से पानी पिया, और खुशी
 से तृप्त हो वहां से चला 
गया , मैंने उस दिन उसे
 अपना गुरु बनाया, 
क्योंकि मैंने उस कुत्ते  
से उस दिन सिखा
 कि अगर आप अपने 
डर से आगे कूद जाते 
हो तो आप जीत जाते
 हो, कोई डर  आपकी
 लक्ष्य पाने की भूख या
 प्यास से बड़ा नहीं हो 
सकता डर के आगे ही 
जीत है , 

एक बार मैं एक मंदिर
 में विश्राम कर रहा था तभी
 , एक बच्चा मेरे पास आया 
,उसके हाथ में जलता 
 हुआ दिया था, मैंने उस 
बच्चे  के ज्ञान को
 जांचने के  लिए 
उससे पूछा क्या तुम 
जानते हो कि इस
 दिए जो यह लो  
है यह कहां से 
आई है
 तो उसने उस 
लो को बुझा दिया , 
और मुझसे  कहा 
 क्या आप जानते 
हो यह  अब कहां गई है
 तो मैंने उस दिन
 उस बच्चे  को 
अपना गुरु बना लिया,  कि 
जरूरी नहीं है कि जो 
आपके पास   है वही
 ज्ञान है ,ज्ञान की कोई
 सीमा नहीं है, वह छोटे 
से बच्चे के पास भी
 हो सकता है, उसने 
 मेरे सवाल का जवाब
  इस तरीके से सवाल 
से दिया कि मुझे 
जवाब भी मिल
 गया और मेरे सामने 
एक सवाल भी 
खड़ा हो गया

तीन साधु की मजेदार कहानी

 रूस में एक झील के किनारे तीन फकीरों का नाम बड़ा प्रसिद्ध हो गया था। लोग लाखों की तादाद में उन फकीरों का दर्शन करने जाने लगे।  यह खबर  सबसे बड़े ईसाई पुरोहित को लगी। उसे बड़ी हैरानी हुई। क्योंकि ईसाई चर्च तो कानूनन ढंग से लोगों को संत घोषित करता है, तभी वे संत हो पाते हैं।
तो प्रीस्ट बड़ा परेशान हुआ। और जब उसे पता चला कि लाखों लोग वहां जाते हैं, तो उसने कहा, यह तो हद हो गई! यह तो चर्च के लिए नुकसान होगा। ये कौन लोग हैं! इनकी परीक्षा लेनी जरूरी है। कहीं ये धर्म की हानि तो नहीं कर रहे , लोगों को बेवकूफ तो नहीं बना रहे , ओर अपना रसूख va पूछ bhi कम हो रही है, बहुत बड़ा नुकसान है ये तो

तो बड़ा प्रीस्ट एक मोटर बोट में बैठकर झील से उन लोगों के पास  गया। जाकर वहां पहुंचा, तो वे तीनों झाड के नीचे बैठे थे। देखकर वह बडा हैरान हुआ। सीधे—सादे ग्रामीण देहाती मालूम पड़ते थे। वह जाकर जब खड़ा हुआ, तो उन तीनों ने झुककर नमस्कार किया, उसके चरण छुए।

उसने समझ  गया कि बिलकुल नासमझ हैं। इनकी क्या हैसियत! उसने बहुत डांटा—, फटकारा कि तुम यहां क्यों भीड़—  इकट्ठी करते हो? उन्होंने कहा, हम नहीं करते। लोग आ जाते हैं। आप उनको समझा दें कि न आए ।  प्रीस्ट ने पूछा कि तुमको किसने कहा कि तुम संत हो?  वो तीनों बोले यही  लोग कहने लगे। हमको कुछ पता नहीं है। प्रीस्ट ने पूछा  तुम्हारी प्रार्थना क्या है? क्या  बाइबिल पढ़ते हो? उन्होंने कहा, हम बिलकुल पढ़े—लिखे नहीं हैं। 
प्रीस्ट ने पूछा तुम प्रार्थना क्या करते हो? क्योंकि चर्च की तो निश्चित प्रार्थना है। तो उन्होंने कहा, हमको तो प्रार्थना कुछ पता ही  नहीं। हम तीनों ने मिलकर एक प्रार्थना  बना ली है।
प्रीस्ट ने कहा  तुम कौन होते हो बनाने वाले प्रार्थना? प्रार्थना तो तय होती है पोप के द्वारा। बिशप्स की बड़ी एसेंबली इकट्ठी होती है, तब एक—एक शब्द का निर्णय होता है। तुम कौन होते  हो प्रार्थना बनाने वाले? तुमने अपनी निजी प्रार्थना बना ली है! भगवान तक जाना हो, तो जो रास्ता प्रीस्ट बताएंगे  उन्हीं तय हुए रास्तों से जाना पड़ता है! खैर ये बताओ  क्या है तुम्हारी प्रार्थना?

वे तीनों बहुत घबरा गए। कंपने लगे। सीधे—सादे लोग थे। तो उन्होंने कहा, हमने तो एक छोटी प्रार्थना बना ली है। आप माफ करें, तो हम बता दें। ज्यादा बड़ी नहीं है, बहुत छोटी—सी है।
प्रीस्ट ने कहा बताओ तो वो तीनों संत बोले 
 यू आर थी, वी आर थ्री , हैव मर्सी आन अस। तुम भी तीन हो, हम भी तीन हैं, हम पर कृपा करो। यही हमारी प्रार्थना है। उस पादरी ने कहा, कम अक्लो,जाहिलो अनपढ़  ग्वारो नासमझो, बंद करो यह बकवास। यह कोई प्रार्थना है? सुनी है कभी? और तुम मजाक करते हो भगवान का कि तुम भी तीन और हम भी तीन हैं?
प्रीस्ट ने कहा कि यह प्रार्थना नहीं चलेगी। आइंदा करोगे, तो तुम नरक जाओगे। तो मैं तुम्हें प्रार्थना बताता हूं आथराइज्‍ड, जो अधिकृत है।
उसने प्रार्थना बताई। उन तीनों को कहलवाई। उन्होंने कहा, एक दफा और कह दें, कहीं हम भूल न जाएं। फिर एक दफा कही। फिर उन्होंने कहा, एक दफा और। कहीं भूल न जाएं। उसने कहा, तुम आदमी कैसे हो? तुम कैसे  संत हो? तो उन्होंने कहा, नहीं, हम कोशिश तो पूरी याद करने की करेंगे, एक दफा आप और दोहरा दें! उसने दोहरा दी
फिर पादरी वापस लौटा उसी बोट से । जब वह आधी झील में था, तब उसने देखा कि पीछे वे तीनों पानी पर भागते चले आ रहे हैं। तब उसके  तो प्राण घबरा गए। उसने अपने माझी से कहा कि यह क्या मामला है? ये तीनों पानी पर कैसे चले आ रहे हैं? उस माझी ने कहा कि मेरे हाथ—पैर खुद ही काँप रहे हैं। यह मामला क्या है! वे तीनों पास आ गए। उन्होंने कहा, जरा रुकना। वह प्रार्थना हम भूल गए; एक बार और बता दो! उस पादरी ने हाथ जोड़े और  कहा कि तुम अपनी ही प्रार्थना जारी रखो। हमारी प्रार्थना तो कर—करके हम मर गए, पर  पानी पर चल नहीं सकते। तुम्हारी प्रार्थना ही ठीक है। तुम वही जारी रखो। वे तीनों हाथ जोड़कर कहने लगे कि नहीं, हमारी प्रार्थना ठीक नहीं है। आपने जो बताई थी, बड़ी लंबी है और शब्द जरा कठिन हैं। और हम भूल गए। हम अनपढ़ ग्वार लोग हैं। हम पर कृपा करो 

 ये तीन आदमी बिलकुल पंडित  या संत नहीं हैं, विनम्र भोले— सीधे सादे  लोग हैं। लेकिन एक स्वयं  अनुभव घटित हुआ है। और स्वयं  अनुभव के लिए किसी प्रकार की  अधिकृत प्रार्थनाओं की जरूरत नहीं है। और स्वयं  अनुभव के लिए कोई लाइसेंस्ट शास्त्रों की जरूरत नहीं है। और स्वयं अनुभव का किसी ने कोई ठेका नहीं लिया हुआ है। हर आदमी हकदार है पैदा होने के साथ ही परमात्मा को जानने का। वह उसका स्वरूपसिद्ध अधिकार है। वह मैं हूं यही काफी है, मेरे परमात्मा से संबंधित होने के लिए। और कुछ भी जरूरी नहीं है। बाकी सब गैर—अनिवार्य है।
जो जानकारी हम इकट्ठी कर लेते हैं, वह जानकारी हमारे सिर पर बोझ हो जाती है। वह जो भीतर की सरलता है,  वो बोझ उसको खा जाता है , सरलता जो है वह  खो जाती है। 
वह अनुभव क्या है? वह अनुभव है,  जहां बूंद सागर में खोती है, तो बूंद को जो अनुभव होता होगा! जैसे व्यक्ति जब समष्टि में खोता है, तो व्यक्ति को जो अनुभव होता है, उस अनुभव का नाम परमात्मा है।
परमात्मा एक अनुभव है, वस्तु नहीं। परमात्मा एक अनुभव है, व्यक्ति नहीं। परमात्मा एक अनुभव है, एक घटना है। और जो भी तैयार है उस घटना के लिए, , उस विस्फोट के लिए, उसमें घट जाती है। और तैयारी के लिए जरूरी है कि अपना अज्ञान तो छोड़े ही, अपना ज्ञान भी छोड़ दें।  और जिस दिन ज्ञान— अज्ञान दोनों नहीं होते, उसी दिन जो होता है, उसका नाम परमात्मा है।

बिल्ली नहीं पालनी

एक महात्मा जी गांव में  झोपड़ी  में रहते थे ।
उनकी झोपड़ी में चूहे बहुत थे ।जो उन्हें बहुत तंग करते थे ,उन्होंने अपने सेवकों को यह बात बताई , ओर पूछा  इस समस्या  से छुटकारा पाने के लिए क्या किया जाए ,तो उन्होंने   कहा बाबा जी परेशान ना हो बिल्ली पाल लो, बिल्ली चूहों को खा लेती  है, महात्मा जी ने कहा ठीक है ,उन्होंने बिल्ली पाल ली , अब जब बिल्ली आ गई तो बिल्ली को दूध चाहिए
अब गांव वाले रोज दूध दे जाते बिल्ली के लिए 
 अब गांव वाले कब तक दूध देते ,तो गांव वालों ने कहा महाराज 15 ,20 दिन हो गए ,अब हमने खूब दूध दे दिया अब एक काम करो रोज आपको दूध तो चाहिए ,इसलिए एक गाय पाल लो,
गाएं  हम लोग दे देंगे
अब दूध तो सच में चाहिए सो एक गाय रख ली 
अब गाय के लिए गांव वाले चारा कब तक दे ,15 20 दिन गांव वाले ने दिया,फिर बोले  महाराज कब तक हम मदद करेंगे एक काम करो ,दो एकड़ खेती की जमीन  ले लो , उसमें चारा बो और  खिलाओ  गाएं को ,महात्मा ने कहा यह भी ठीक है जरूरी है क्योंकि भाई बिल्ली रखना है तो, दूध चाहिए और दूध चाहिए तो गाय चाहिए ,और बिल्ली इसलिए चाहिए कि चूहा खाएगी अब क्या किया जाए अब चारा के लिए खेती ले ली ,अब चारा काटे कि भजन करें,या  माला जपे, कि प्रभु को पाए, कि चारा काटे
उन्होंने अपनी समस्या गांव वालो को बताई

 गांव वाले बोले महाराज जी  गांव में  एक विधवा औरत है ,उसका कोई नहीं है उसको हम आपके आश्रम पर रख देते हैं वो चारा काटती रहेगी गाय को खिलाती रहेगी आपके लिए दूध मिल जाएगा आप बिल्ली को पिलाते रहना झंझट खत्म ,
 महात्मा बोले ये ठीक है काम बन गया
वक्त बीता 
अब गांव में महात्मा जी की बाते होने लगी, धीरे धीरे, कुछ सही ज्यादा गलत, , तो गांव वाले बोले महाराज ऐसे काम नहीं चलेगा अब तो शादी करनी पड़ेगी ,आपको तभी चलेगा ,ऐसे काम नहीं चलेगा शादी करनी पड़ेगी आखिरकार महात्मा जो को  शादी करनी पड़ी , इसलिए करनी पड़ी ,  क्योंकि गाएं के लिए चारा बोना va काटना था ,क्योंकि गाय रखनी थी और गाय इसलिए रखनी थी क्योंकि दूध चाहिए था दूध इसलिए चाहिए था क्योंकि बिल्ली पाल ली थी और बिल्ली इसलिए बुलाई थी क्योंकि चूहा खत्म करने  के लिए ,अंत  में  शादी हो गई 
वक्त बीता 
जब महात्मा जी का अंतिम समय आया  तो शिष्यों ने पूछा कोई गुरु ज्ञान दो महात्मा जी बोले सब कुछ करना बिल्ली मत पालना सब कुछ करना पर बिल्ली मत पालना ये पूरा खेल बिल्ली से स्टार्ट हुआ है यही हम तुमको बताना चाहते हैं कि अगर झंझट पाल लोगे तो झंझट बढ़ते ही जाएंगे ,बढ़ते ही चले जाएंगे सर्वोत्तम उपाय है जो प्राप्त है वही पर्याप्त  है, वह किसी से कम नहीं है जो मिला नहीं उसका कोई गम नहीं है जो मिला है वो लाजवाब है जो मिलने वाला है वो सिर्फ एक ख्वाब है हमें 

तीन नशेड़ी

ज़रूर, मैं आपकी मदद करता हूँ। यहाँ कहानी को चार प्रॉम्प्ट में तोड़कर, गलतियों को ठीक करके प्रस्तुत किया गया है:
प्रॉम्प्ट 1:
तीन नशेड़ी और गंजेड़ी, नशे की हालत में एक साथ बैठे हुए थे। उनके दिमाग में अचानक एक विचार आया कि क्यों न कोई व्यवसाय शुरू किया जाए। पहला नशेड़ी उत्साहित होकर बोला, "क्यों न हम एक किराने की दुकान खोल लें?"
प्रॉम्प्ट 2:
दूसरे नशेड़ी ने पहले के विचार को खारिज करते हुए कहा, "नहीं यार, यह ठीक नहीं है। लोग उधार ले लेकर हमें कंगाल कर देंगे, और फिर उनसे पैसे मांगते फिरना पड़ेगा। यह झंझट का काम है।" तभी तीसरे नशेड़ी ने एक नया सुझाव दिया, "तो क्यों न हम गन्ने उगा लें? दो-तीन बार कटाई करके बेचेंगे और खूब सारा पैसा कमाएंगे।"
प्रॉम्प्ट 3:
लेकिन दूसरे नशेड़ी को यह विचार भी पसंद नहीं आया। उसने कहा, "नहीं यार, यह भी ठीक नहीं है। ये गांव वाले गन्ने तोड़-तोड़ कर खा जाएंगे, हमारे पास कुछ बचेगा ही नहीं।" निराशा में, दूसरे नशेड़ी ने गुस्से में कहा, "इन सालों की ऐसी की तैसी! क्यों न पूरे गांव में आग लगा दें? न होगा बांस, न बजेगी बांसुरी!"
प्रॉम्प्ट 4:
रात के अंधेरे में, तीनों नशेड़ियों ने मिलकर गांव में आग लगा दी। लोग दहशत में इधर-उधर भागने लगे, अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे और आग बुझाने में लगे हुए थे। यह देखकर तीनों नशेड़ी खूब हँस रहे थे और मज़ा ले रहे थे। तभी एक गांव वाला उनके पास से गुज़रा। एक नशेड़ी ने हँसते हुए उस गांव वाले से कहा, "और चूसो हमारे गन्ने!"