एक बार एक साधु अपने
शिष्यों के साथ बैठा हुआ
था, उनसे बात कर रहा था।
उनमें से एक शिष्य ने कहा
की गुरु जी, हम आपसे
आपके गुरु के बारे में
जानना चाहते हैं ,उनका
क्या नाम था, ,कितना
समय आप लोगों ने
साथ बिताया।साधु
ने कहा तुम्हे आश्चर्य होगा
मेरा एक गुरु नहीं है । मेरे
तो कहीं गुरु है , मैने जीवन
में जिससे भी कोई अच्छी
बात सीखी उसे मैने अपना
गुरु मान लिया ,आज मैं
तुम्हें अपने गुरुओं के बारे में
बताता हूं, मेरा सबसे
पहला गुरु है एक औरत ,
एक बार में जंगल मैं
पेड़ के नीचे विश्राम कर
रहा था ऊपर पेड़ पर
बैठे एक कबूतर ने मेरे
ऊपर विष्ठा कर दी, मैंने
उसको क्रोध में उसको
पत्थर मारा, पत्थर उसे
लगा ,वो चोट को सह
नहीं सका और नीचे
गिर गया,उसकी मृत्यु
हो गई , कुछ देर बाद
मुझे अपनी गलती का
एहसास हुआ कि मैंने
इतना क्रोध क्यों किया,
अपने उस अशांत मन को
शांत करने ,व अपने पाप के
प्रायश्चित के लिए मैं जंगल
में गांवों , में चलना शुरू कर
दिया,कई दिनों तक भूखा
प्यासा चलता रहा ,कई
दिन चलने के बाद जब
एक शाम
में थका हारा, भूखा
प्यासा , एक घर के आगे
रुका,उस घर का दरवाजा
खड़काया , अंदर से
एक औरत बाहर आई
मैंने उसे बोला कि मुझे
कुछ जलपान करवा दो ,
उस औरत ने कहा आप
पांच मिनट विश्राम करो
में जल पान ले कर आती हूं
मेरे पति अभी अभी खेत
से आए हैं , उन्हें भोजन
देना है ,वह अंदर गई
और वह भूल गई की
बाहर में भी इंतजार कर
रहा हु , वह औरत पौने
घंटे तक बाहर नहीं आई
जब वह बाहर आई तो,
मैंने उसे क्रोध से देखा
और कहा तुमने मुझे
बहुत लंबा इंतजार
करवाया, पति की सेवा
ज्यादा जरूरी है या घर
आए एक भूखे साधु
की, तो उसने बोला कि
साधु महाराज मेरे को
इस तरह क्रोध से मत
देखो मैं कोई कबूतर नहीं
हूं जिसे आप क्रोध से
देखोगे तो वह मर जाएगा
, मेरे पति सुबह 5:00 से
के खेत पर गए हुए थे
अभी शाम को 6.00
बजे वापस थके हरे आए
है ,में एक पतिव्रता औरत
हु ,मेरा पहला कर्तव्य
बनता है कि मैं उनकी
सेवा करूं उन्हें जलपान .
दूं, खाना खा कर जब
वह विश्राम करने लगे ,
तो में उनके पैर दबाने
लग गई ,उनकी आंख
लग गई उनकी नींद
पक्की हो जाए ,इस
लिए में बीच में नहीं उठी
, मेरा इरादा आपका
निराधार करना नहीं
था, में अपने बोले गए
शब्दों के लिए माफी
मांगती हु यदि उन्होंने
आपको कष्ट पहुंचाया है
पति की सेवा करते
समय मेरे सहज ही
दिमाग से निकल गया कि
आप बाहर बैठे हुए हैं
, क्षमा मांगती हूं साधु
ने कहा कि नहीं तुम्हें
क्षमा मांगने की जरूरत
नहीं है इसमें तुम्हारी
कोई गलती नहीं है मैं ही
अपने क्रोध को नियंत्रित
नहीं कर पाता हूं
मैने उस औरत का
अपना प्रथम गुरु
मान लिया
क्योंकि उस औरत से
मुझे यह शिक्षा मिली कि अगर
आप अपने रिश्तों में
अपने कर्तव्य के प्रति
ईमानदार है तो आपको
किसी भी प्रकार की
तपस्या कि,या तप,
बल, ध्यान की जरूरत
नहीं है जो सिद्धि लोग
कहीं वर्षो तक तपस्या
करके प्राप्त करते हैं
आप ईमानदारी से
अपने कर्तव्य को
निभाते हुए उस सिद्धि
को प्राप्त हो जाते है
एक बार की ओर
बात है चलते-चलते मुझे
रात हो गई मैं गांव में
पहुंचा,में बहुत थक
गया था ,तो वहां मैं
एक स्थान ढूंढने लगा
जहां जाकर मैं विश्राम
कर सकूं, मुझे कोई
स्थान मिल नहीं रहा था ,
तभी मैंने देखा कि एक
व्यक्ति कुछ तोड़ रहा है ,
मैं उसके पास गया ,मैंने
उससे पूछा कि क्या
तुम मुझे आसपास
कोई स्थान बता सकते
हो, जहां में जाकर
विश्राम कर सकूं ,तो
उस व्यक्ति ने कहा
कि पास में एक एक
मंदिर है , परन्तु इस
समय मंदिर बंद हो
चुका है ,तो आप इस
समय मेरे घर चलकर
आराम कर सकते हो,
अगर आप को कोई
आपत्ति न हो तो
क्योंकि , मैं पेशे से
एक चोर हूं, साधु ने
कहा मुझे इसमें कोई
आपत्ति नहीं है, तुम्हारे
घर आराम कर लेता
हूं ,मैं वहां आराम करने
गया ,मेरी वहां पर
तबियत बिगड़ गई
इसलिए मैंने तीन से
चार दिन और वहीं
पर आराम किया ,
इस दौरान मैंने देखा
कि वह रोज रात को
चोरी करने जाता
असफल हो जाता
लेकिन निराश नहीं
होता था, वह अगली
रात को फिर भगवान
के आगे माथा टेक कर
प्रार्थना करता की
आज मुझे सफल जरूर
करना ,वह पूरी लगन के
साथ दोबारा चोरी करने
चला जाता,हर बार
असफल होता पर निराश
नहीं होता , फिर चौथे
दिन उसने काफी बड़ा
हाथ मार लिया ,और
उस दिन वह बहुत
खुश था ,और अब
मेरी तबीयत भी ठीक
हो चुकी थी ,तो मैं
जब वहां से जाने
लगा था ,तो मैंने
उसे समझाया कि
तुम यह गलत काम
छोड़ दो,
वह मान गया ,इस
शर्त के साथ की में
उसे कोई अच्छा काम
दिला दूं में उसे ले कर
राजा के पास गया ,
राजा को सारी बात
बताई राजा चोर की
ईमानदारी से खुश हुआ
राजा ने चोर से उसकी
योग्यता पूछी, चोर ने
कहा में राज्य में कहीं
चोरी न हो ,उसका पुख्ता
इंतजाम कर सकता हु,
,व जासूसी जैसा कार्य
बड़ी दक्षता से कर सकता
हु , राजा ने , मंत्री को
बोल कर उसे उसकी
योग्यता के अनुसार
कार्य पर लगवा दिया,
फिर में वहां से चला गया
,उम्मीद करता हु वह
अपना कार्य लगन va
ईमानदारी se kr rha
hoga
चोर मेरा दूसरा गुरु था
जिससे मुझे सीखने को
मिला कि जो भी कम
करो पूरी लगन और
ईमानदारी से करो ,
बहुत बार असफलता
मिलेगी ,परन्तु निराश
नहीं होना ,अपने प्रभु
पर विश्वास रखो और
अगर आपको कभी
जीवन में अच्छा
रास्ता चुनने का
अवसर मिले तो
उस अवसर को
हाथ से जाने मत दो,
एक बार में एक तालाब
के किनारे विश्राम कर
रहा था मैंने देखा एक
बहुत ही प्यासा कुत्ता
वहां आया लेकिन वह
बार-बार पानी के पास
जाए, और फिर दूर हो
जाए शायद वह अपनी
परछाई से डर रहा था,
आखिर उससे अपनी
प्यास बर्दाश्त नहीं हुई
उसने पानी के अंदर
अपना मुंह डाल दिया,
जैसे ही उसने मुंह पानी
में डाला , उसकी परछाई
टूट गई, और उसने शांति
से पानी पिया, और खुशी
से तृप्त हो वहां से चला
गया , मैंने उस दिन उसे
अपना गुरु बनाया,
क्योंकि मैंने उस कुत्ते
से उस दिन सिखा
कि अगर आप अपने
डर से आगे कूद जाते
हो तो आप जीत जाते
हो, कोई डर आपकी
लक्ष्य पाने की भूख या
प्यास से बड़ा नहीं हो
सकता डर के आगे ही
जीत है ,
एक बार मैं एक मंदिर
में विश्राम कर रहा था तभी
, एक बच्चा मेरे पास आया
,उसके हाथ में जलता
हुआ दिया था, मैंने उस
बच्चे के ज्ञान को
जांचने के लिए
उससे पूछा क्या तुम
जानते हो कि इस
दिए जो यह लो
है यह कहां से
आई है
तो उसने उस
लो को बुझा दिया ,
और मुझसे कहा
क्या आप जानते
हो यह अब कहां गई है
तो मैंने उस दिन
उस बच्चे को
अपना गुरु बना लिया, कि
जरूरी नहीं है कि जो
आपके पास है वही
ज्ञान है ,ज्ञान की कोई
सीमा नहीं है, वह छोटे
से बच्चे के पास भी
हो सकता है, उसने
मेरे सवाल का जवाब
इस तरीके से सवाल
से दिया कि मुझे
जवाब भी मिल
गया और मेरे सामने
एक सवाल भी
खड़ा हो गया