Tuesday 15 September 2015

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        orignal                         कर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है

  एक बहुत ही यशस्वी राजा था। वह अपने हर कार्य में सर्वश्रेस्ट था। प्रजा का खूब ध्यान रखता था ,उन्हें कभी भी किसी भी  बात के लिये तंग नही करता था,धर्मत्मा व दयालु था ,,उसकी एक आदत यह भी थी की वह सप्ताह में एक दिन गोशाला की सफाई ,गायों को नहलाने  का कार्य भी स्वयं  ही करता था ,एक बार वह गोशाला में अपने कार्य में लगा हुआ था ,,तबी एक साधू भिक्षा मांगता हुआ गोशाला तक आ गया ,उसने राजा से भिक्षा मांगी ,राजा अपने ध्यान में मग्न सफाई कर रहा था, शायद कुछ खिजा भी हुआ था ,उसने दोनों हाथो से उठा कर गोबर साधु की झोली में डाल दिया ,साधू  आशीर्वाद देते हुए वंहा से चला गिया ,,.राजा को कुछ देर बाद अपनी गलती का एहसास हुआ ,राजा ने सैनिको को साधु को ढूढ़ने के लिए भेजा परन्तु साधु नही मिला।

                 इस बात को ना जाने कितना समय बीत गया ,,एक बार राजा शिकार करने जंगल में गया हुआ था ,खूब थकने पर वह पानी की तलाश में भटकते भटकते  एक कुटिया के बाहर पहुंचा ,, कुटिया के अंदर झांकने पर उसने देखा वहां एक साधु धयान में मग्न बैठा था ,वहीं उसके पास एक खूब बड़ा गोबर का ढेर लगा हुआ था ,राजा अचंभित व परेशान हो कर सोचने लगा की साधु के चेहरे का तेज कितना अधिक है, पर यह गोबर का ढेर  क्यों है यहाँ ,,,राजा साधु के पास गया ,प्रणाम किआ ,जल माँगा व पिया ,और पूछा साधू से ,अगर आप बुरा ना  माने तो क्या में जान सकता हु की आप के चेहरे का तेज कहता है की आप एक तपस्वी है ,,फिर आप की कुटिया में इतनी गंदगी किओ है ,साधू ने कहा राजन हम जीवन मै जो कुछ बी जाने या अनजाने ,अच्छा या बुरा करते है वह हमें इसी जन्म में या अगले जनम में की गुना हो कर मिलता है ,यह गोबर भी किसी दयालु ने दान में दिया है,राजा को झटका लगा और सारी घटना कई  की साल पहले की स्मरण हो आई।
                               राजा ने साधू से क्षमा मांगी व प्रायश्चित का मार्ग पूछा ,साधु ने कहा राजन इस गोबर को तुम्हें खा कर समाप्त करना है ,,इसे जला कर राख में बदल लो व थोड़ा थोड़ा खा कर समाप्त करो ,राजा ने कहा
    साधु महाराज कोई और उपाय बताये क्योकि थोड़ा थोड़ा खा कर समाप्त करने में की वर्ष बीत     जायेगे ,साधु ने कहा राजन और उपाए तुम कर नही पाओगे ,राजा अड़ गया तो साधु ने कहा 
    राजन कोई कार्य ऐसा करो की तुम्हारी चारो कुंठो में बदनामी हो , इस से इसी जन्म में       तुम्हारे इस कार्य का कुछ तो भार अवश्य ही कम हो जायेगा ,,राजा महल में गया बहुत सोचने     के बाद अगले दिन सुबह उसने राज्य की सबसे सुंदर वेश्या को बुलाया ,वह खूब सजदज कर   आई ,राजा उस वेश्या को ले कर रथ पर पूरे  राज्य का भर्मण करने निकल पड़ा ,,जिसने भी राजा  वेश्या के साथ देखा वह आचम्भित रह गया ,,व साथ ही थू थू करने लगा ,,प्रजा कहने लग पड़ी  लगता है राजा का दिमाग खराब हो गया है.,,,,राजा ने इस प्रकार की महीनो तक किया ,काफी दिन घूमने के बाद राजा जब  गोबर के ढेर के   को देखने गया तो उसने पाया अब वहां केवल शायद उतना ही गोबर रह गया है जो उसने साधु को दिया था,, वह और भी कई  दिनों के उसी प्रकार के कार्य के बाद भी समाप्त नही हो रहा था। ।अचानक एक दिन साधु महल में आया उसने राजा से कहा राजन यह तो मूल है इसे तो तुम्हे खा कर ही समाप्त करना पड़ेगा ,,राजाने उस गोबर को राख में बदला व खा कर  समाप्त किया। 
 शिक्षा :   हमे अपने किये हर कर्म का फल हर हाल में भुगतना पड़ता है। 
          
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                    कमाल 
         एक गांव के बाहर एक सिद्ध साधु रहता था ,  उसके द्वार से कभी कोई निराश नही लोटता था,  उसी की झोपड़ी के बाहर उसी का एक सेवक रोज  सारा  दिन साधु की कुटिया के बाहर बैठा रहता ,जो सेवा उसके हिस्से आती ,उसे चुप चाप कर देता ,कभी किसी से कुछ नही कहता ,जो खाने को मिलता खा लेता नही मिलता तो चुप चाप सेवा करता रहता ,उसकी सेवा बेमिसाल थी। उसी गांव की एक औरत की शादी को की साल हो गए थे। उसके यहाँ कोई बच्चा नही था ,काफी सालो से वह साधु महाराज के पास भी आशीर्वाद लेने जाती थी परन्तु वहाँ से भी हर बार निराश ही लोटती थी. इस बार उसने ठान लिया की वह साधु से बच्चा होने का आशीर्वाद ले कर ही लौटेगी।  वह साधु के पास गई खूब गिडगडाई ,आप सभी  की झोली भरते हो मुझे भी अपने खजाने में से एक पुत्र दे दो। साधु को उस पर दया आई उसने अपने भगवान का धयान लगाया ,काफी देर बाद जब उसने आँखे खोली ,तो उसके चेहरे पर घोर निराशा थी ,,,उसने कहा पुत्री में तुम्हे आशीर्वाद नही दे सकता ,,मेने प्रभु से बात की है ,,उन्होने कहा  है इस जन्म में यह  नही हो सकता  है। पुत्री मुझे माफ़ कर दो। वह हार कर बुरी तरह से रोती हुई बाहर  की तरफ चल पड़ी। जब वह रोती  हुई जा रही थी तो उस सेवक ने जो हर रोज वहां बाहर बैठा रहता था ,उसे रोक कर पूछा ,बहन किओ इतना रो रही हो ,उसने  रोते  हुए उसे सारी  बात बताई। न जाने उस सेवक के मन में किआ आया,उसने उसे कहा  जा जल्दी ही तेरी गोद में पुत्र खेलेगा। वह रोती हुई वहां से चली गई ,,लगभग  एक साल बाद वह जब अपने पुत्र के  साथ साधु यहाँ माथा  टेकने व बच्चे को आशीर्वाद दिलवाने के लिए आई तो साधु भी हैरान रह गया ,,उसने उससे पूछा यह कैसे संभव हुआ,,,क्योकि मुझे तो सवयं प्रभु ने कहा था की तुम्हारी गोद नही भरी जा सकती है ,,,उस औरत ने कहा  महाराज मुझे किया पता में तो रोते हुए जा रही थी ,,तो जो आप के बहार वो जो सेवक हमेशा चुपचाप बैठे रहते है उन्होने कहा था रो मत,, अगली बार जब तू यहाँ आएगी तो पुत्र के साथ आएगी ,, बस  महाराज और यह में अब यहाँ  अपने खुद के पुत्र के साथ माथा टेकने व आशीर्वाद लेने आई हु।  साधु बहुत ही हैरान हुआ ,उसने बच्चे व उसकी माँ को आशीर्वाद दिया ,जब वह औरत वहाँ से चली गई तो साधु फिर से अपने ध्यान कक्ष में गया ,प्रभु का धयान लगाया ,प्रभु  से जब बात होनी शुरू हुई तो साधु ने पूछा प्रभु  मेने  आप को उस औरत को बच्चा देने के लिए कहा तो आप ने मुझे कहा इस जन्म में उसे बच्चा नही हो सकता फिर आप ने उस की गोद अब कैसे भर दी और मुझे झूठा साबित करवा दिया।   … तब प्रभु  ने कहा नही ऐसी बात नही है जब मेने तुम्हे कहा था बच्चा नही  हो सकता वह बात सच  थी. लेकिन  जब वह औरत रोती हुई जा रही थी तो तुम्हारे बाहर बैठे उस सेवक उसे कह  दिया जा तेरे बेटा हो जायेगा ,,तो मैं खुद परेशान हो गिया में कब से इन्तजार कर रहा था की तेरा वो सेवक कुछ मांगे और में उसे दू  अब उसने माँगा भी तो उस औरत के लिए तो मुझे कुछ फरिश्ते भेज कर उस औरत के शरीर में गर्भ बनवाना पड़ा जो की उसके नही था ताकि तेरे वा  मेरे उस सेवक की वो बात पूरी हो सके जो उसने पहली बार मुझसे मांगी है। में कब से तरस रहा था उसे कुछ देने के लिए। …। to be continue
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 बार एक यश्स्वी राजा एकब्राह्मणों को  महल के बहुत बड़े  आँगन में  भोजन करा रहा था । व  
राजा के  रसोइये  महल के  उसी  आँगन में भोजन पका रहे  थे 
ठीक  उसी समय एक चील अपने पंजो  में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजर रही थी। 
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी बचाव  के लिए  चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला । 
तब रसोइये  जो की  लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहे थे , किसी को जरा सा  भी  पता नहीं चला की , उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई  है ।

अतः  वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मृत्यु  हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख व संताप  हुआ ।
अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईये  .... जिनको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है .... 
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....

बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....


फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।

उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया परन्तु  रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना अपना वंहा पर  .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"

बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।


यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??

जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के  भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । साथ ही उस महिला को तो सच्चाई नही पता ना की वास्तव में हुआ किआ ,बिना सच जाने वह राजा को दोष कैसे दे सकती हे।  इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।

बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव व बिना बात की तह (डेप्थ ) तक जाये  से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।


अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??


ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....


इसलिये आज से ही संकल्प कर लें कि किसी के भी और किसी भी पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से कभी नहीं करना यानी किसी की भी बुराई या चुगली कभी नहीं करनी हैं । 

लेकिन यदि फिर भी हम ऐसा करते हैं तो हमें ही इसका फल आज नहीं तो कल जरूर भुगतना ही पड़ेगा। KARMA PHILOSOPHY
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                                                     घमण्ड
 एक बार सत्यभामा कृष्ण भगवान सुदर्शन चक्र  वा गरुड़ जी आपस में बैठे हुए हंसी ठिठोली कर रहे थे. तभी अचानक सत्यभामा  ने कृष्ण भगवान से पूछा  है प्रभु की हे प्रभु मेरी एक समस्या का निवारण कीजिए मुझे बताइए की इस धरती पर इस द्वापर युग में  या इससे पहले त्रेता युग में मुझसे ज्यादा सुंदर स्त्री क्या  हुई है. और पूछा क्या सीता मुझसे अधिक सुंदर थी/   कृष्ण भगवान इससे पहले कि कोई जवाब देते हैं तभी सुदर्शन चक्र ने पूछा हे प्रभु क्या मुझसे ज्यादा शक्तिशाली इस धरती पर द्वापर युग में त्रेता युग में कोई हुआ है   अब कृष्ण भगवान और सोच में पड़ गए कि यह अचानक हो क्या रहा है,, इतने में ही गरुड़ जी भी बोल पड़े पूछा हे प्रभु मेरी भी एक समस्या का निवारण कीजिए ,मुझे बताइए क्या द्वापर युग में या त्रेता युग में मुझसे अधिक गति से उड़ने वाला कोई हुआ है अब तो प्रभु सोचों में ही पड़ गए यह हो क्या रहा है यह सब  तो घमंड के सागर में गोते लगा रहे हैं,,,,, इन्हें कैसे  इस घमंड के सागर से बाहर निकाला जाए,,,,,, किशन भगवान ने  उन तीनों से कहा, त्रेता युग वा द्वापर  युग से संबंधित बात का अगर कोई जवाब   दें सकता है तो वह हनुमानजी हैं   जो उस युग में भी उपस्थित थे और आज भी उपस्थित हैं,,,,,, कहीं दूर हिमालय पर तपस्या में लीन हैं उन्हीं को यहां बुला लेते हैं वही आप तीनों की समस्या का निवारण करेंगे,,,,, इतने में गरुड़  जी तुरंत बोल पड़े प्रभु मैं जाकर हनुमान जी को ले आता हूं वह अब तक बूढ़े हो गए होंगे उन्हें काफी समय लग जाएगा,,,, मैं तो अभी जाऊंगा और तुरंत वापस आ जाऊंगा,,,, भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ठीक है  गरुड़ जी आप जाइए व हनुमान जी को यहां ले आइए, साथ ही उन्होंने सुदर्शन चक्र से कहा मैं कुछ समय विश्राम करने के लिए अपने कक्ष में जा रहा हूं ,,,,आप ध्यान रखिएगा  की कोई मेरे आराम में बाधा ना डालें,,, सुदर्शन चक्र ने कहा प्रभु आप निश्चिंत होकर विश्राम कीजिए,,,, जब तक आप नहीं कहेंगे कोई आपके कक्ष में नहीं जाएगा,,,,, सत्यभामा भी यह सुनकर अपने कक्ष में चली गई,,,, गरुड़ जी बिजली की गति से हनुमान जी के पास पहुंचे,,,,, हनुमान जी तपस्या में लीन थे,,,, शरीर से वृद्धि लग रहे थे हनुमान जी को जैसे ही यह एहसास हुआ की कोई उनके पास आया है उन्होंने आंखें खोली ... गरुण जी को प्रणाम किया व उनके आने का प्रयोजन   पूछा.   गरुड़ जी ने कहा भगवान श्री कृष्ण ने आपको याद किया है....... हनुमान जी तुरंत चलने के लिए तैयार हो गए,,,,, गरुड़ जी ने कहा आइए आप मेरी पीठ पर सवार हो जाइए मैं तुरंत आपको वहां पहुंचा दूंगा,,,,,, हनुमान जी ने कहा नहीं आप चलिए मैं वहां पहुंच जाऊंगा,,,, गरुड़ जी ने फिर कहा आप वृद्ध हो गए हैं आपको समय लग जाएगा वह सफर में आप थक जाएंगे इसलिए आप मेरी पीठ पर सवार हो जाइए,,,, हनुमान जी ने कहा नहीं आप चलिए मैं वहां पहुंच जाऊंगा,,,,  गरुड़ जी ने कहा   ठीक है हनुमान जी जैसी आपकी इच्छा,,,,, गरुड़ जी वापसी के लिए   उड़ चलें और कुछ ही पलों में भगवान श्री कृष्ण के महल में पहुंच गए,,,,,,,,, वहां पहुंचकर उन्होंने देखा के मुख्य कक्ष में कोई भी नहीं है,,, उन्हें लगा हनुमानजी को आने में कुछ समय लगेगा मैं तब तक भगवान श्रीकृष्ण को उनके आने की सूचना  देता हूं,,,,  गरुड़ जी जब भगवान श्रीकृष्ण के कक्ष में पहुंचे तो दृश्य देखकर हैरान रह गए की हनुमान जी वहां पहले से ही उपस्थित है उन्हें अपनी बात का जवाब मिल गया,,,, बातों की आवाज सुनकर सत्यभामा  भी कक्ष में  पहुंची,,  सत्यभामा को देखते ही हनुमान जी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा हे प्रभु त्रेता युग में  सीता माता , जो  उस  युग  व द्वापर युग की सबसे सुंदर स्त्री थी क्या यह उनकी दासी है,,,, यह बात सुनते ही सत्यभामा का चेहरा उतर गया,,, परंतु उन्हें अपनी बात का जवाब मिल गया,,, अचानक श्रीकृष्ण भगवान ने हनुमान जी से पूछा जब आपने मेरे कक्ष में प्रवेश किया तो क्या किसी ने आप को रोका नहीं,,,,, हनुमान जी ने कहा हां प्रभु जब मैं आप के कक्ष में प्रवेश कर रहा था तो मुझे सुदर्शन ने रोकने की कोशिश की थी परंतु  मुझे मेरे प्रभु से मिलने से कौन रोक सकता है ,,,, और यह कहते हुए उन्होंने अपना मुंह खोला मैं सुदर्शन को निकाल कर बाहर रख दिया,,,,,,, तीनों समझ गए कि यह लीला प्रभु ने हमारे अंदर पनप रहे घमंड को तोड़ने के लिए की है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, इस संसार में या किसी भी युग में घमंड किसी भी प्रकार का हो टूटता अवश्य है,,,,,,,, 

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                                           घमण्ड (2 )


 महाभारत के युद्ध के बाद एक बार जब श्री कृष्ण व सभी पांडव अपनी सभा में बैठकर युद्ध के परिणामों पर चर्चा कर रहे थे तभी ना जाने क्या हुआ  की अचानक भीम ने कहा की मेरी गदा ने सबसे अधिक लोगों को दूसरे लोक में पहुंचाया है,,, इसके बाद अर्जुन ने कहा कि नहीं सबसे अधिक मेरे धनुष के बाणों ने नरसंहार किया है   व इस युद्ध को जीतने में मदद की है,, अर्जुन के बाद  युधिस्टर ने कहा कि नहीं सबसे अधिक मेरे  भाले ने


  इस युद्ध में दुश्मनों को यमलोक पहुंचाया है,, नकुल और सहदेव भी कहां चुप बैठने वाले थे उन्होंने कहा नहीं,,,,,,, सबसे अधिक लोगों को हमने यमलोक पहुंचाया है,,,,,, श्री कृष्ण  जब यह बातें सुनी  तो वह समझ गए कि घमंड इन सबके सिर पर चढ़कर बोल रहा है,,,,, अब इन लोगों ने श्रीकृष्ण  को कहा कि आप ही बताएं सबसे अधिक  किसने युद्ध में अपना कौशल दिखाया है,,,,,, तो श्रीकृष्ण ने कहा मैं तो रथ चला रहा था हम एक  काम  करते हैं बर्बरीक से पूछते हैं क्योंकि बर्बरीक का कटा सिर युद्ध के मैदान में सबसे बड़े बरगद के पेड़ सबसे ऊपर सिरे पर से सारे युद्ध को  देख रहा था,,,,,,, बर्बरीक ही बता सकता है की सबसे अधिक नरसंहार किसके  शस्त्र ने किया है,,,,,, सभी युद्ध के मैदान में बर्बरीक के पास पहुंचे और  बर्बरीक को अपनी समस्या बताई,,, और  बर्बरीक से प्रार्थना की कि वह बताएं की सबसे बड़ा योद्धा कौन है,,,,, बर्बरीक ने जो जवाब दिया उसे सुनकर सभी का घमंड चूर चूर हो गया,,,,, बर्बरीक ने कहा मेरे को  सारे युद्ध में केवल कृष्ण का चक्कर      (  चक्र)  व काली का खप्पर दिखाई दे  रहा था,,,,,, चक्र  संहार कर रहा  था  मां काली का खप्पर   खून को धरती पर गिरने से बचा रहा था,,,,,






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Thursday 10 September 2015

मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन




                                             मुफ्त का चंदन  घिस मेरे नंदन

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                                                    अति
अति का भला ना बोलन         
             अति की भली न चुप                             अत ते रब दा बड़ा जबरदस्त बेर हुँदा है 
            अति का भला  न बरसना                    excess of limit every thing is bad
                                                                       god hates those who do excess of any thing
                अति की भली न धूप    




मैं मिटी मेरी जात मिटी
ते बाबुल मेरा मिटीखाना
माँ मेरी ने मिटी जमीं
ते ना रखेया मरजाणा

        मुफ्त का चंदन  usually do not buy sandal wood but in temples 
        घिस मेरे नंदन   they keep on grinding sandal on rock stone as it is free 

धरती लगी फटने       when people come to know there might some calamity
प्रशाद लगे बटने         take place ,then atheist also start praying 

        कामी ,क्रोधी लालची इनसे भक्ति ना होए 
       भक्ति करे कोई सूरमा, जाती ,वरण ,कुल खोये 

                     साधु ऐसा चाहिए जैसे सूप सुभाए
                     सार सार को गाहे रहे ,थोथा देय उड़ाए

वैसे दोनों एक है बनने का है फेर
एक को बख्तर कहे एक को शमशेर
                     
  गोरी सोयी सेज पर मुख पर डाले केश
 चल खुसरो घर अपने रेन भई सब देश
                       
                              बंदर पीठ के बल चले ,मछली नाचे नाच
                             जितना खोदो रहस्य को उतना गहरा राज


मान सहित विष पी के शम्बू भये जगदीश 
बिना मान अमृत पिया राहु कटायो शीश 
                                

  जे गर किस्मत होवे स्वली 
when luck favors ,even rice grow on barren land
  पुंजे जमन मोठ                   
                           
                                              किस्मत दी इक रती चंगी
                                                iota of luck  is better than super genius mind
                                             तोला अकल दा कम नहीं अवन्दा
                         

    we have to drink our cup alone whether it is full of our  blood or tears 
but when it is full of honey or nectar ,,, yes men will be your best friend without your knowledge


an empty door tempts even the saint
मुफ्त की शराब तो काजी भी नहीं छोड़ता 

                               तस्वीर के पोज से रिश्तों की गहरायी नहीं पता की जा सकती 

भांगड़ा नहीं जचदा ढोल बिना 
नोट नहीं मिलदे रोन बिना 
  
     
                           hockey by chalaki 
                               cricket by chance
                                      football  by dance
                                                      दौड़ by rule 
                                                              होड़  by hool 
                                                                     कबड्डी  by  शक्ति 
                                                                               रब  by भक्ति     


In peace son buries his father 
शांति के वक्त बेटा  बाप की चिता  को आग लगता है। 
In war father buries his son
युद्ध के दौरान बाप बेटे  की चिता  को आग लगता है 




                         रिश्ते विशवास की बहुत ही नाजुक डोर से बंधे होते है 
                              डोर इतनी कमजोर होती है की इसे टूटते देर नहीं लगती 

आभावग्रस्त जीवन व्यक्ति को मजबूर बना देता है 
     और जब मजबूरी अपने घुटने टेक  देती है 
          तो व्यक्ति अपना सयम खो देता है ,

                                                                                 
                                                










            
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Monday 7 September 2015

history of medicines

 Eat root      1000 bc
           root will cure you
          and prayer to God

   in 1850 Ad : the prayer is superstition
   drink this potion

    in 1940 Ad: This potion is snake oil take
    this pill

   in 19845 Ad: This pill is ineffective
   take antibiotic

    IN 2000 AD: this antibiotic is creating
    very harmful effects in body

    TAKE THE ROOT




Man is a creature  composed of millions of cells
;A microbe is composed of only one cell yet
throughout the ages the two have been in ceaseless
conflict,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

take care of nature,and nature will take care of you

Friday 4 September 2015

othe amla te hone ne nebere ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े

                                           सूफी हीरे मोती 

पढ़ी नमाज ते रियाज़ न सिखया , तेरिया  किस  कम पढ़िया  नामाजा 
     ना  घर दीठा ना घरवाला  दीठा  , तेरिया किस कम कितिया नियाज़ा 
    इल्म  पढ़या ते अमल ना कीता ,तेरिया किस कम कितिया काजा 
    ,बुल्ले शाह पता तद लगसी जद ,चिड़ी  फसी हथ बाजा 

 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी   तेरी जात पुछणी  
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी   तेरी जात पुछणी    
          
         जूठे मान तेरे जूठे सब चेहरे    
         किसे नइ तेरी बात पूछनी 
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी  तेरी जात पुछणी 
            जो घड़या सो भजना इक दिन ,जो बण्या  सो ढेणा 
           आखिर छड्ने महल मीनारे ,बैठ सदा नही रहणा 
            चार दिना डा मेला   ऐहते बोती देर नही बैणा
           जो बीजेगा  सादक झल्या ओहि वडणा   पैणा 
          जोवी छेडा सादक चल्या ,ओहि मनणा   पैणा 

   ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी   तेरी जात पुछणी 
    ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी  तेरी जात पुछणी 
            कोल नइ बैणा बैन बरावा पल विच जा दफ़नाणा  
            टूर जाणा तेनु सब ने छड  ,बोता  चिर नइ लाणा 
             मुक जाणे सब जेणे तेरे  हेठ मिटी जद औणा 
             उस दिन सादक रुसे नु तेनु  किसे  नी  औंण मनाणा 
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी   तेरी जात पुछणी 
           तेनु मोडा देके टोरना जहान ने 
            तेनु मोडा देके टोरना जहान ने 
           आणा मिटी थले तेरी ऊची शान ने 
           सुचे (सुजे )  छड के तू टुर जाणा वेड़े 
                          सूफी हीरे मोती 

 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी  तेरी जात पुछणी 
            जो घड़या सो भजना इक दिन ,जो बण्या  सो ढेणा 
           आखिर छड्ने महल मीनारे ,बैठ सदा नही रहणा 
            चार दिना डा मेला   ऐहते बोती देर नही बैणा
           जो बीजेगा  सादक चल्या ओहि वडणा   पैणा 
          जोवी छेडा सादक चल्या ,ओहि मनणा   पैणा 

   ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी   तेरी जात पुछणी 
    ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी  तेरी जात पुछणी 
            कोल नइ बेणा बैन बरावा पल विच जा दफ़नाणा  
            टूर जाणा तेनु सब ने छड  ,बोता  चिर नइ लाणा 
             मुक जाणे सब जेणे तेरे  हेठ मिटी जद औणा 
             उस दिन सादक रुसे नु तेनु  किसे  नी  औंण मनाणा 
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े ,किसे  नी   तेरी जात पुछणी 
           तेनु मोडा देके टोरना जहान ने 
            तेनु मोडा देके टोरना जहान ने 
           आणा मिटी थले तेरी ऊची शान ने 
           सुचे छड के तू टुर जाणा वेड़े 
             किसी न तेरी जात पुछणी 
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी 
         झूठे मान ते आकड़ तेरी झुठिया  तेरियाँ  बाता 
         गल्ला नाल बनावे पल विच दिना नु कालिया राता 
        झूठे महल मनारे तेरे झुठिया  तेरियाँ जाता 
       अमला बाजो सादक उथे किसे न लेणिया बाता 
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी 
       किसे कोल घड़ी भर ना खलौणा ए 
       किती आपणी  नु सारेया ने रोणा ए 
     होणे वखो वख संगी साथी जेड़े 
       , किसी न तेरी जात पुछणी 
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी 
           पंछी वांगो उड़ जाणा ए इक दिन मार उडारी 
          कदर ऊना दी पैणी  उथे अमल जिना दे भारी 
          हर शे  छडणी पैणी बन्दया जान तो जैणी प्यारी 
          अज टुरया कोई कल टुर जाणा सादक वारो वारी  
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी    तेरी जात पुछणी 
           वे  बोल जबान तो बोल चंगा ,मिठे बोल दा जग असिर  हुँदा  
           मंदा बोल कदे मुओ कडिये न , मंदा बोल सजना तिखा तीर हुँदा 
           इक बोल जहान विचो रब दिंदा ,इक बोल मेरा अक्सीर हुँदा 
         चंगे बोल दे बोल्या शान ऊचा ,चंगे बोल दा चंगा अखीर हुँदा   
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी    तेरी जात पुछणी 
        किसे  नइ  तेरी जात पुछणी 
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी    तेरी जात पुछणी 
        किसे रोंदे  हसाया ई दस ना 
       किसे भुखे नु रजाया ई ते दस ना 
       राह चो कदे रोणे नु हटाया ई  दस ना 
       कदे जख्मी किसे दा फट नइ सीता 
       ऐवे  फिर कख नही कीता
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी
          किसे  नी    तेरी जात पुछणी 
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी 
         झूठे मान ते आकड़ तेरी झुठिया  तेरियाँ  बाता 
         गल्ला नाल बनावे पल विच दिना नु कालिया राता 
        झूठे महल मनारे तेरे झुठिया  तेरियाँ जाता 
       अमला बाजो सादक उथे किसे न लेणिया बाता 
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी 
       किसे कोल घड़ी पल  ना खलौणा ए 
       किती आपणी  नु सारेया ने रोणा ए 
     होणे वखो वख संगी साथी जेड़े 
       , किसे  नी तेरी जात पुछणी 
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी 
           पंछी वांगो उड़ जाणा ए इक दिन मार उडारी 
          कदर ऊना दी पैणी  उथे अमल जिना दे भारी 
          हर शे  छडणी पैणी बन्दया जान तो जैणी प्यारी 
          अज टुरया कोई कल टुर जाणा सादक वारो वारी  
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी    तेरी जात पुछणी 
           वे  बोल जबान तो बोल चंगा ,मिठे बोल दा जग असिर  हुँदा  
           मंदा बोल कदे मुओ कडिये न , मंदा बोल सजना तिखा तीर हुँदा 
           इक बोल जहान विचो रब दिंदा ,इक बोल मेरा अक्सीर हुँदा 
         चंगे बोल दे बोल्या शान ऊचा ,चंगे बोल दा चंगा अखीर हुँदा   
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी    तेरी जात पुछणी 
        किसे  नइ  तेरी जात पुछणी 
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी    तेरी जात पुछणी 
        किसे रोंदे  हसाया ई दस ना 
       किसे भुखे नु रजाया ई ते दस ना 
       राह चो कदे रोणे नु हटाया ई  दस ना 
       कदे जख्मी किसे दा फट नइ सीता 
       ऐवे  फिर कख नही कीता
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी
        राह छडया बयानकदारी  दा 
        वल दसे चोरी  चकारी ,यारी दा 
        कर नास न नेको करी दा 
       नेका नु बदी सिखावे तू 
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी
       लुक लुक के सौदे करना ये 
      बिन मेहनत बोझे भरना ये 
      पर ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी
          ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी
    लुक लुक के सौदे करना ये 
    बिन मेहनत बोझे भरना ये 
   सादा नु चोर बनावे तू 
   तू न अल्ला कोलो डरना ये 
 पर 
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी
 ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी
   पहले अमला दी खुलणा  किताब ने 
    पहले अमला दी खुलणा  किताब ने 
   पहले अमला दी खुलणा  किताब ने 
    पहले अमला दी खुलणा  किताब ने 
वेखे जाणे फिर सबदे हिसाब ने 
सादक आपो आप होणे  ने नाखेणे
   किसे  नी  तेरी जात पुछणी
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी
     पहले अमला दी खुलणा  किताब ने 
      वेखे जाणे फिर सबदे हिसाब ने 
      वेखे जाणे फिर सबदे हिसाब ने 
      वेखे जाणे फिर सबदे हिसाब ने 
      वेखे जाणे फिर सबदे हिसाब ने 
 किसे  नी  तेरी जात पुछणी
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी  तेरी जात पुछणी

ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे  नी   तेरी जात पुछणी



bulleh shaw

                                                               bulleh shah










चढ़दे सूरज ढलदे देखे... बुझदे दीवे बलदे देखे।
हीरे दा कोइ मुल ना जाणे.. खोटे सिक्के चलदे देखे।
जिना दा न जग ते कोई, ओ वी पुतर पलदे देखे।
उसदी रहमत दे नाल बंदे पाणी उत्ते चलदे देखे।
लोकी कैंदे दाल नइ गलदी, मैं ते पथर गलदे देखे।
जिन्हा ने कदर ना कीती रब दी, हथ खाली ओ मलदे देखे ....
पैरां तो नंगे फिरदे, सिर ते लभदे छावा,

मैनु दाता सब कुछ दित्ता, क्यों ना शुकर मनावा ....
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मके गया गल मुकदी नाही


मके गया गल मुकदी नाही

पावैं सौ सौ जुम्मे पढ़ाइये

गंगा गया गल मुकदी नाही

पावैं सौ सौ गोते खाईय

गया गया गल मुकदी नाही

पावैं सौ सौ पंड परढ़ाईय

बुल्लेह शाह गल ताइयों मुकदी

जदो में नु दिलो मुकाइये


पढ़ पढ़ आलम फ़ाज़ल होया

कदे आपणे आप नु पढ़या ई नइ

जा जा वरणा ए मंदिर मसीता

कदे मन आपणे विच वरणा इ नइ

ऐवें इ रोज़ शैतान नाल लड़ना ए

कदे नफ़्स आपणे नाल लड़या इ नइ नफ़्स ego,self,lust,मन ,अहंकार

बुल्लेह शाह आसमानी उड़निया फड़ना ए

जेड़ा घर बैठा ए ऊनु फड़या ई नइ

सिर ते टोपी ते नियत खोटी

लेणा की टोपी सिर तर के

चिले किते पर रब ना मिल्या Tasbih is Mala in Hindi माला

लेणा की चिल्या विच वड़ के

तस्बीह फिरि पर दिल न फिरया

लेणा की तस्बीह हथ फड़

बुल्लेहा जाग बिना दुध नही जमदा

पावें लाल होवे कड़ कड़ के




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बुल्ला की जाना मैं कौन

ना मैं मोमन विच मसीतां न मैं विच कुफर दीयां रीतां
न मैं पाक विच पलीतां, न मैं मूसा न फरओन
बुल्ला की जाना मैं कौन

न मैं अंदर वेद किताबां, न विच भंगा न शराबां
न रिंदा विच मस्त खराबां, न जागन न विच सौण
बुल्ला की जाना मैं कौन
न मैं शादी न गमनाकी, न मैं विच पलीती पाकी
न मैं आबी न मैं खाकी, न मैं आतिश न मैं पौण
बुल्ला की जाना मैं कौन
न मैं अरबी न लाहौरी, न मैं हिंदी शहर नगौरी
न हिंदू न तुर्क पिशौरी, न मैं रेहदंा विच नदौन
बुल्ला की जाना मैं कौन

न मैं भेत मजहब दा पाया, न मैं आदम हव्वा जाया
न मैं अपना नाम धराएया, न विच बैठण न विच भौण
बुल्ला की जाना मैं कौन
अव्वल आखर आप नू जाणां, न कोई दूजा होर पछाणां
मैंथों होर न कोई स्याना, बुल्ला शौह खड़ा है कौन
बुल्ला की जाना मैं कौन


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सोहने मुखड़े दा लैन दे नज़ारा वे केहडा तेरा मुल्ल लगदा

sohne mukhde da lain de nazara ve kehda tera mul lagda

सोहने मुखड़े दा लैन दे नज़ारा,
वे केहडा तेरा मुल्ल लगदा ।
एहना अंखिया दा होण दे गुजारा,
वे केहडा तेरा मुल्ल लगदा ॥

हुसन तेरे दी खैर मनावां,
जे तक्क लै तां मैं तर जावां ।
ऐवें निक्का जेहा कर दे इशारा,
वे केहडा तेरा मुल्ल लगदा ॥
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जे रब मिलदा नाहते धोते
जे रब मिलदा नाहते धोते
ते मिलदा ड्ड्डूआ मछिआं नु
जे रब मिलदा जंगल फिरया

ते ओ मिलदा गैयाँ बछिय नु
जे रब मिलदा मंदिर मसीति
ते ओ मिलदा चम चिड़िखियां नु
वे बुलया रब ऊना नु मिलदा
दिल दया अच्छाया सचियां नु (नियता जिना दिया अच्छियाँ नु ) Je rab milda nahateya dhoteya,

te o milda dadduan machiyan noo.

Je rab milda jangal pahareyan,

te o milda gaiyaan bachiyan noon.

Je rab milda mandir - masiti,

te o milda cham chidikhiyan noon.

Ve Bulleya rab onhan noon milda..

Ati dil-eya achiyyan sachhiya noon.


हम किया बनाने आये थे
हम किया बनाने आये थे और किया बना बैठे
कहीं मंदिर बना बैठे कहि मस्जिद बना बैठे 
हम से तो अच्छी परिंदो की जात है
कभी मंदिर पे जा बैठे
कभी मस्जिद पे बैठे




Hum Kya Banane Aaye the Kya Bana baithe
Kahi Mandir, Kahi Masjid, kahi kaabba bana Baithe
Hum Se to Jaat Achi hai un Parindon Ki
Kabhi mandir par Jaa Baithe
Kabhi Masjid Par Jaa Baithe...