Monday 28 August 2023

क्यों भद्रा काल में राखी नहीं बांधते

                       क्यों भद्रा काल में राखी नहीं बांधते। 


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जितने  भी ग्रह नक्षत्र ,उनकी चाले  , समय उनका शुभ अथवा अशुभ प्रभाव है ,यह सब युगो युगो से है ,किसी ने भी इसे आज नहीं निर्मित किया है ,जिस प्रकार सूर्य उदय ,सूर्यअस्त ,पूर्णिमा ,अमावस ,श्राद ,संग्रांद ,सब कुछ हजारो साल पहले से ही तय समय पर आता व जाता है ,ठीक उसी प्रकार ये राहु काल ,भद्रा इत्यादि है ,

c,d,&,c  by ritesh nagi 

कुछ लोगो को ऐसा लगता  है की ऐसा मीडिया वाले या कोई एक व्यक्ति कर  रहा है यह सब बदलाव  ऐसा आने वाले युगो में भी सम्भव नहीं होगा की इन को आगे पीछे या कम या  ज्यादा अपनी मर्जी से किया जा सके। 



यदि आप श्राद्ध ,नवरात्रे ,पूर्णिमा अमावस ,संग्रांद ,मानते है तो भद्रा काल भी है ,              अन्यथा नहीं , हम ये नहीं कर  सकते की अपनी सुवीधा अनुसार कुछ बाते  माने  कुछ नहीं ,    कभी वही सोशल मीडिया व व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी सही ,कभी व्ही गलत 


दुनिया का इकलौता मंदिर जंहा भगवान् शिव गोपी के रूप में वास करते है


हर साल रक्षा बंधन का त्यौहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। 




      इस साम सावन की पूर्णिमा ३० अगस्त को सुबह 10:58  से शुरू हो         कर 31 अगस्त सुबह 07:05  तक है। 



इस साल जिस दिन राखी है उसी  दिन सुबह 10:59  से रात 09:०1 तक रक्षा बंधन पर भद्रा का साया रहेगा। 



भद्रा के साये की वजह से राखी बांधने का शुभ  व सही  मुहूर्त 30 अगस्त  रात 09:01 से 31  अगस्त सुबह 07:05  तक ही है। 

                       


हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए ,जिस प्रकार राहुकाल में नहीं करते ,इस लिए इस भद्रा काल के दौरान राखी बांधना अशुभ मन जाता  है। 



सूर्यदेव व छाया  की पुत्री के रूप में भद्रा का ज न्म  हुआ था ,             भद्रा का स्वभाव उथल पुथल वाला व आक्रामक है ऐसा माना  जाता है 


भारत की इकलौती नदी जिसे लोग अपवित्र मानते है वा छूने से भी डरते है।

भद्रा अपने आक्रमक व उपद्रवी स्वभाव के कारन धार्मिक कार्यो हवंन  यज्ञ ,धार्मिक अनुष्ठानो में बाधा  पहुंचाया करती थी। 



तब किन्ही कारणों   ब्रह्मा जी ने उससे कहा की तुम्हारा  एक समय तय किया जा रहा है ,तुम सिर्फ उस तय समय में ही अपना प्रभाव कार्यो पर डाल  सकोगी,   हर समय नहीं। 





 तभी से भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। 




                                              ज्ञान की बाते मिल कर  बांटे


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बहुत खतरनाक है यह चौथा सिद्धांत

क्यों भद्रा काल में राखी नहीं बांधते

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भारत की इकलौती नदी जिसे लोग अपवित्र मानते है वा छूने से भी डरते है।

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ज्ञान जन्मो जन्मो तक रहता है knowledge remains as eternal


Wednesday 23 August 2023

करोड़पतियों का गांव कहते है इसे ,भारत में ही है

  करोड़पतियों का गांव कहते है इसे ,भारत में ही है 


गांव शब्द सुनते ही जो छवि आप के दिमाग में वहां के लोगो व वहां  की परिस्थितियो की   आती है आज वो बदल जाएगी 



करोड़पतियों का गांव



भारत में अनगिनत गांव है ,असली भारत  तो बस्ता ही गांवो  में है। 

भारत के हर व्यक्ति की जड़े या दिमाग कंही न कंही गावों से जरूर जुड़ा हुआ होता है 


तुम काले हो तुमसे हमारा स्टेट्स मेल नहीं खाता , नौकरी के लगते ही बदल गई पत्नी, ज्योति मौर्य की तरह पति को छोड़ा



 

किस गांव को कहा जाता है करोड़पतियों का गांव

भारत के महाराष्ट्र राज्य में  अहमदनगर जिले में  एक गांव है हिवरे बाजार(Hiware Bazaar)  इसे  करोड़पतियों का गांव कहा जाता है।  इस  हिवरे बाजार(Hiware Bazaar)  गांव में करीब 300 से अधिक परिवार रहते हैं, जिसमें से 70 से अधिक परिवार करोड़पति हैं। 

 




गांव में नहीं  है मच्छर

 इस गांव में मच्छर नहीं मिलता है। क्योकि  गांव वाले मच्छरों को प्राकृतिक तरीको व  सफाई रख कर  पनपने ही नहीं देते है   इस गांव को मच्छर मुक्त गांव भी कहा जाता है। 

 राम दुलारी मायके गई………….

Jagranjosh

कभी सूखे से ग्रसित था गांव

महाराष्ट्र के इस गांव में  80-90 के दशक में  सूखा पड़ने लगा था, इस कारण यहां के  लोग गांव  छोड़ कर जाने लग गए  थे। कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने यहां रूककर समस्या का हल   करने की  सोची।


इन बहादुर लोगो ने  गांव में कुएं खोदने के साथ पेड़ लगाने की शुरु किये । गांव वालों ने फॉरेस्ट मैनेजमेंट कमेटी का गठन किया, जिसे महाराष्ट्र सरकार की ओर से फंड दिया गया,,एक दिन मेहनत रंग लायी  वे  यहां का जलस्तर बढ़ने लगा। 


 


 फसलें उगाते हैं कम पानी वाली गांव के लोग

गांव के लोग यहां पर कम पानी वाली फसलें उगाते है ताकि पनि बचा  सके  हैं। यहां के किसान  ज्वार और बाजरा व आलू और प्याज की खेती भी करते हैं।

 इस गांव में रहने वाले 50 से अधिक परिवार की वार्षिक आय 50 लाख रुपये से अधिक है। 

 



                                                               NEWS

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ऐसा क्या हुआ था आखिर उस रात, उस गांव में की … इंसान, जानवर कीड़े मकोड़े मक्खियां तक जिंदा नहीं बची थीं

 ऐसा क्या हुआ था  आखिर उस रात, उस  गांव में की … इंसान, जानवर  कीड़े मकोड़े   मक्खियां तक जिंदा नहीं बची थीं 

21 अगस्त 1986 की रात लगभग 9 बजे एक पश्चिमी अफ्रीकी गांव न्योस [Nyos] में लोगों ने बहुत भयंकर   गड़गड़ाहट की आवाज सुनी. अगली सुबह  जब  एफ़्रैम चे [Ephraim Che] उठा तो पाया कि लगभग सभी लोग जिन्हें वह जानता था वह मर चुके थे.

Nyos Lake disaster- मरे पड़े जानवर [Image-Twitter/@museumsireland]

Nyos Lake disaster- मरे पड़े जानवर 

. ‘कार्बन डाइऑक्साइड’ गैस ने एक ‘साइलेंट किलर’ की तरह काम करती है 

 . इंसानों, जानवरों , मक्खियों,कीड़ो मकोड़ो  का भी दम घुट गया. ‘न्योस डिजास्टर लेक घटना में 

   1746 लोगों और लगभग 3,500 जानवरों की मृत्यु हो गई थी. 



 

21 अगस्त 1986 की रात लगभग 9 बजे एक पश्चिमी अफ्रीकी गांव न्योस [Nyos] में लोगों ने बहुत भयंकर   गड़गड़ाहट की आवाज सुनी. अगली सुबह  जब  एफ़्रैम चे [Ephraim Che] उठा तो पाया कि लगभग सभी लोग जिन्हें वह जानता था वह मर चुके थे.

पूरे गांव में मौत सन्नाटा एक रूह को कंपा देने वाली ख़ामोशी  पसरी  हुइ  थी  , एफ़्रैम के होश उड़ गए. अचानक उसने  एक महिला के रोने की आवाज सुनी ,  वह महिला के पास गया    वह महिला हलीमा थी, जिसे वह जानता था.


 हलीमा दुःख से पागल हो चुकी थी  उसने अपने कपड़े फाड़ दिए थे.

 हलीमा बुरी तरह से चिल्ला  रही थी. 

 एफ़्रैम ने अपने परिवार के 30 अन्य सदस्यों और उनके  लगभग 400 जानवरों को देखा.ऐफ्रेम के अनुसार  ‘उस दिन मृतकों पर कोई मक्खियां नहीं थीं.  कीड़े भी  नहीं थे  ‘न्योस लेक डिजास्टर’ प्रकोप से   बचे   एफ़्रैम और हलीमा की बातें रूह को कंपा देती  हैं.




न्योस लेक डिजास्टर के कारण  


न्योस झील  आपदा का मुख्य कारण झील की गहराई  में  कार्बन डाइऑक्साइड गैस का जमा होना था,जब यह गैस का एक विस्फोट के साथ झील से बहार आयी व पुरे गांव में फ़ैल गयी ,जिससे हजारो जानवर,पशु,मखिया ,व कीड़े मकोड़े सभी मर गए ,झील में से बहुत गन्दी दुर्गन्ध आ रही थी जब बाद में लोग वहां पहुंचे,बाद में इस बात की पुष्टि हुयी की गैस झील में से ही निकली थी 


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Tuesday 15 August 2023

सीता ने अपने ससुर का गया में श्राद्ध किया था. क्या वजह थी कि सीता को अपने पति राम के होते हुए भी अपने ससुर का पिंडदान करना पड़ा था,



 सीता ने अपने ससुर का गया में श्राद्ध किया था.  क्या वजह थी कि सीता  को अपने पति  राम के होते हुए  भी अपने ससुर का पिंडदान करना पड़ा था, 




हिन्दू धर्म में अपने पितरो के लिए श्राद्ध करना उनके नाम का पिंड  दान करना इसका बहुत महत्व है ,,पुत्र  ही माता पिता  का पीड़ दान व श्राद्ध करता है  वो न हो तो पोता  नाती नातिन या बहु ,सीता माता को किन परिस्थितियों में राजा दशरथ का पिंड दान करना पड़ा 




पिंड दान  हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर गया  में किया जाता है ,पिंड दान से पितरो को मोक्ष मिलता है व वे हमे आशीर्वाद देते है ऐसा वेद पुराण कहते है 

गयाजी में पिंडदान की बात का जिक्र रमायण में भी किया गया है.ऐसी मान्यता है की  कि एक परिवार से कोई एक ही 'गया' करता है. गया करने का मतलब होता है, गया में पितरों को पिंडदान किया जाना पुत्र अथवा पोते द्वारा 



 सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था ऐसा  वाल्मिकी रामायण में कहा  गया  है. 
और तब  राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिला था. वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया  पहुंचे. वहां श्राद्ध कर्म के लिए जरुरी  सामग्री जुटाने के लिए श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए थे. उस समय कुछ परिस्थितिया ऐसी बनी की सीता को  दशरथ का पिंडदान गयाजी में करना पड़ा राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति में 


 भरत और शत्रुघ्न ने अंतिम संस्कार की हर विधि को विधिवत  पूरा किया था. लेकिन राजा दशरथ को सबसे ज्यादा मोह  अपने बड़े बेटे राम से था इसलिए अंतिम संस्कार के बाद उनकी चिता की बची हुई राख उड़ते-उड़ते गया में नदी के पास पहुंची.





उस समय  राम और लक्ष्मण वहां मौजूद नहीं थे और सीता नदी के किनारे बैठी थी . तभी सीता को राजा दशरथ की छाया  दिखाई दी पर  राजा दशरथ  ने सीता से कहा मेरे पास समय कम है   वा  अपने पिंडदान करने की विनती की. उधर दोपहर हो गई थी. पिंडदान का समय भी निकलता जा रहा था .

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सीता ने उस समय उसे अपना दायित्व समझा और अपने सौर राजा दशरथ का श्राद्ध करने का निर्णय लिया 
सीता ने राजा दशरथ की राख को  अपने हाथों में लिया. वहां  उस समय  मौजूद फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को इस पिंडदान का साक्षी बनाया





.पिंडदान करने के बाद जब  राम  और लक्ष्मण  बाजार से लोट सीता के पास  आए,तब सीता ने उन्हें ये सारी बात बताई. 
राम ने कुछ नहीं कहा फिर भी  सीता ने पिंडदान में साक्षी बने पांचों जीवों को बुलाया.





उन पांचो को लगा की  राम को गुस्से में  है ,
 फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी और ब्राह्मण ने  हर बात से इंकार कर दिया. जबकि अक्षय वट ने सच बोलते हुए सीता का साथ दिया. तब  सीता ने झूठ बोलने वाले चारों जीवों को श्राप दे दिया. जबकि अक्षय वट को वरदान देते हुए कहा कि तुम हमेशा पूजनीय रहोगे और जो लोग भी पिंडदान करने के लिए गया आएंगे. उनकी पूजा अक्षय वट की पूजा करने के बाद ही सफल होगी.



 फल्गू नदी को श्राप दिया कि वह सिर्फ नाम की नदी रहेगी। उसमें पानी नहीं रहेगा। इसी कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी है।यह नदी    जमीन  नीचे  बहती है किसी को भी दिखती नहीं है। 


 
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 गाय को श्राप दिया कि गाय पूजनीय होकर भी सिर्फ उसके पिछले हिस्से की पूजा की जाएगी और गाय को खाने के लिए दर बदर भटकना पड़ेगा। आज भी हिन्दू धर्म में गाय के सिर्फ पिछले हिस्से की पूजा की जाती है।



माता सीता ने ब्राह्मण को कभी भी संतुष्ट न होने और कितना भी मिले  पर उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी का श्राप दिया। इसी कारण ब्राह्मण कभी दान दक्षिणा के बाद भी संतुष्ट नहीं होते हैं।





 माता सीता ने तुलसी को श्राप दिया कि वह कभी भी गया कि मिट्टी में नहीं उगेगी। यह आज तक सत्य है कि गया कि मिट्टी में तुलसी नहीं फलती



और कौआ को हमेशा लड़ झगड़ कर  खाने का श्राप दिया था। कौआ आज भी खाना अकेले नहीं खाता है।



                                            ज्ञान की बाते मिल कर  बांटे


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क्यों सास बहू कहा जाता इन नदियों को 

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