Thursday, 24 April 2025

कुछ डालोगे ,कुछ दोगे जीवन को जिंदगी को तो ही कुछ मिलेगा


एक मुसाफ़िर तपते रेगिस्तान में भटक गया था। उसके पास जो थोड़ा-बहुत खाने-पीने का सामान था, वह तेज़ी से ख़त्म हो गया। दो दिन से उसकी प्यास बुझ नहीं रही थी। उसे भीतर से लग रहा था कि अगर अगले कुछ घंटों में पानी नहीं मिला, तो उसकी साँसें थम जाएँगी। पर कहीं न कहीं उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ न कुछ चमत्कार तो ज़रूर होगा और उसे पानी मिल जाएगा। फिर भी, उसके मन में उम्मीद की एक किरण बची हुई थी।
तभी, दूर उसे एक छोटी सी झोंपड़ी दिखाई दी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। पहले भी वह मरीचिका और धोखे के कारण ठगा जा चुका था। लेकिन अब उसके पास विश्वास करने के सिवा कोई और रास्ता भी तो नहीं था। आख़िरकार, यह उसकी आख़िरी उम्मीद थी। अपनी बची हुई ताक़त समेटकर वह झोंपड़ी की ओर बढ़ने लगा। जैसे-जैसे वह नज़दीक पहुँचता गया, उसकी उम्मीद बढ़ती गई, और इस बार किस्मत भी उस पर मेहरबान थी। सचमुच, वहाँ एक झोंपड़ी खड़ी थी।
लेकिन यह क्या? झोंपड़ी तो बिल्कुल सुनसान पड़ी थी। ऐसा लग रहा था जैसे बरसों से वहाँ कोई इंसान न आया हो। फिर भी, पानी की आस में वह व्यक्ति झोंपड़ी के अंदर दाखिल हुआ। अंदर का नज़ारा देखकर उसे अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं हुआ। वहाँ एक हैंडपंप लगा हुआ था। उस व्यक्ति में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया। पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसता हुआ वह तेज़ी से हैंडपंप चलाने लगा। लेकिन हैंडपंप तो कब का सूख चुका था। वह व्यक्ति निराश हो गया। उसे लगा कि अब उसे मौत से कोई नहीं बचा सकता। वह बेदम होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।
तभी उसकी नज़र झोंपड़ी की छत से लटकी एक पानी से भरी बोतल पर पड़ी। वह किसी तरह रेंगता हुआ उसकी तरफ़ बढ़ा और उसे खोलकर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल पर चिपका एक कागज़ दिखाई दिया। उस पर लिखा था - "इस पानी का इस्तेमाल हैंडपंप चलाने के लिए करो और बोतल को वापस भरकर रखना मत भूलना।"
यह एक अजीब दुविधा थी। उस व्यक्ति को समझ नहीं आ रहा था कि वह पानी पिए या उसे हैंडपंप में डालकर चालू करे। उसके मन में कई सवाल उठने लगे - अगर पानी डालने पर भी पंप नहीं चला तो? अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुई तो? क्या पता ज़मीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो? लेकिन क्या पता पंप चल ही पड़े? क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो? वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे।
फिर, कुछ देर सोचने के बाद उसने बोतल खोली और काँपते हाथों से पानी पंप में डालने लगा। पानी डालकर उसने भगवान से प्रार्थना की और पंप चलाने लगा। एक, दो, तीन... और हैंडपंप से ठंडा-ठंडा पानी निकलने लगा। वह पानी किसी अमृत से कम नहीं था। उस व्यक्ति ने पेट भरकर पानी पिया, उसकी जान में जान आ गई। उसका दिमाग़ फिर से काम करने लगा। उसने बोतल में दोबारा पानी भरा और उसे छत से लटका दिया।
जब वह यह सब कर रहा था, तभी उसे अपने सामने एक और काँच की बोतल दिखाई दी। खोलने पर उसमें एक पेंसिल और एक नक्शा पड़ा हुआ था, जिसमें रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया गया था। उस व्यक्ति ने रास्ता याद कर लिया और नक्शे वाली बोतल को वापस वहीं रख दिया। इसके बाद उसने अपनी बोतलों में (जो उसके पास पहले से थीं) पानी भरा और वहाँ से चलने लगा।
कुछ दूर जाने के बाद उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा, फिर कुछ सोचकर वह वापस उस झोंपड़ी में गया और पानी से भरी बोतल पर चिपके कागज़ को उतारकर उस पर कुछ लिखने लगा। उसने लिखा - "मेरा विश्वास कीजिए, यह हैंडपंप काम करता है।"
यह कहानी पूरे जीवन के बारे में है। यह हमें सिखाती है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी हमें अपनी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। और इस कहानी से यह भी सीख मिलती है कि कुछ बहुत बड़ा पाने से पहले हमें अपनी ओर से भी कुछ देना होता है। जैसे उस व्यक्ति ने नल चलाने के लिए मौजूद सारा पानी उसमें डाल दिया।
देखा जाए तो इस कहानी में पानी जीवन में मौजूद महत्वपूर्ण चीज़ों को दर्शाता है, कुछ ऐसी चीज़ें जिनकी हमारी नज़रों में ख़ास कीमत है। किसी के लिए मेरा यह संदेश ज्ञान हो सकता है, तो किसी के लिए प्रेम, तो किसी और के लिए पैसा। यह जो कुछ भी है, उसे पाने के लिए पहले हमें अपनी तरफ़ से उसे कर्म रूपी हैंडपंप में डालना होता है, और फिर बदले में आप अपने योगदान से कहीं ज़्यादा मात्रा में उसे वापस पाते हैं।

No comments:

Post a Comment