एक बार की बात है,
एक छोटे से गांव में
मोहन और रुक्मिणी
दो पड़ोसि रहते थे , वे बचपन से ही एक-दूसरे के अच्छे दोस्त रहे थे। जैसे-जैसे वक्त बीता , उनका रिश्ता और भी जड़े पकड़ता गया, और वे अब एक-दूसरे के साथ ज्यादा समय बिताने लगे थे ,जब वे बारहवीं कक्षा में आए, तब मोहन को एहसास होने लगा कि रुक्मिणी के प्रति उसके दिल में दोस्ती से आगे बढ़ कर कुछ है , वह रुक्मिणी से जब बात करता था , उसकी आंखों में खो जाता था। लेकिन वह दोस्ती कहीं खत्म न हो जाए इस डर से अपने प्यार के इजहार से डरता था ।रुक्मिणी भी हमेशा मोहन के साथ वक़्त बिताने के बहाने ढूंढती थी, और जब भी मोहन के पास होती थी बहुत खुश रहती थीं। वह भी अपने प्यार के इजहार से डरती थी कि कहीं मोहन से उसकी दोस्ती खत्म न हों जाए ।
एक दिन मोहन ने आखिरकार सही समय देख कर रुक्मिणी को अपने दिल की बात बता दी । रुक्मिणी तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी।उसकी आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़े।रुक्मिणी ने अपने अंदाज से अपनी आंखों से अपने प्यार का इजहार कर अपनी मन की बात जाहिर कर दी, दोनो को ऐसा लग रहा था जैसे की मन से कोई बोझ उतर गया हो ।
दोनों ने अपने परिवारों में ये बात बता दी,दोनों के परिवारों को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी,जल्द ही दोनों ने विवाह कर लिया, जैसा कि सभी के साथ होता है ,मोहन va रुक्मिणी ke साथ भी होना शुरू हो गया , अब जीवन पहले जैसा भी नहीं रहा था , जिम्मेदारियां लापरवाहियों va बेपरवायियों पर अब हावी हो गई थी, जीवन की नई चुनौतियां मुंह फाड़े सामने खड़ी थी , वैसे भी कहा जाता है शादी प्रेम की समाधी ,दोनो में अब किसी न किसी बात पर तकरार हो जाती थी ,फिर दोनों एक दूसरे से कई कई दिनों तक बात नहीं करते थे , एक दिन तो गलतफहमी इतनी बड़ी की दोनों में खूब बहस हो गई , रुक्मिणी अपना कुछ जरूरी सामान लेकर अपनी मां के पास चली गई, मोहन भी काम से छुट्टी लेकर अपने मां बाप के पास चला गया ,जैसा कि कहा जाता है, सच्चा प्यार किसी भी मुश्किल को हरा सकता है, सबसे बेहतरीन रिश्ते पवित्र वा सच्चे प्यार से बनते है, दोनों अपनी मानसिक स्थिति अपने पेरेंट्स से छिपा नहीं सके ,दोनों के पेरेंट्स ने दोनों को समझाया कि, ये एक साधारण सी बात है किसी रिश्ते में बहस या तकरार होना ,एक दूसरे से शादी शुदा जीवन में तकरार होना नॉर्मल है अगर तकरार नहीं होती तो वह एबनॉर्मल है, फिर किसी शायर ने कहा भी है कुछ दूरियां दरमियान रहने दो , इससे भी नजदीकिया निखरती है, दोनों को अब एक दूसरे की कमी खलने लगी थी ,लेकिन मुश्किल ये थी शुरुआत कौन करे , आखिर मोहन के पेरेंट्स ने मोहन को समझाया कि रुक्मिणी हिचकिचा रही होगी ,तुम्हे फोन करने से ,तुम ही उसे फोन कर लो, मोहन ने रुक्मिणी को सुबह फोन करके बोला में तुम्हे कल लेने आ रहा हूं,रुक्मिणी तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी ,रुक्मिणी पूरे अधिकार व हक से बोली कल नहीं तुम मुझे आज ही लेने आ रहे हो , मोहन उस पल मिली खुशी को छिपा नहीं पा रहा था , मोहन दोपहर को ही रुक्मिणी के घर पहुंच गया , यहां दो नियम अपना काम बेखूबी से कर रहे थे, तकरार खत्म अगर करनी है तो बिना नई बहस के शुरू होने से पहले कर दो , की तेरी ये गलती, तेरी वो गलती ,ये किए बगैर कर दो , अन्यथा तकरार के बीज फिर कभी भी नई बहस बन कर फूट पड़ेंगे, दूसरा हर, बहस हर झगड़ा, हर तकरार अगर तुरंत न खत्म की जाए तो उसे तेजी से बढ़ने वाली बेल की तरह से फिर तुरंत कंट्रोल नहीं किया जा सकता है ।
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