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Saturday, 4 March 2017
Saturday, 25 February 2017
नवग्रह कवच ( jyotish) Armour for nine planets
नवग्रह कवच
नवग्रह कवच
Armour for nine planets
(my originals )
जो हमारे शरीर में है,वही सब ब्रहमांड में है। All that is outside you is with in you ."यत पिंडे तत ब्रह्माण्डे "
इस नवग्रह कवच का रोज पाठ करने से आप निश्चित रूप से महसूस करेगे की जो ग्रह आपको तंग कर रहे थे ,कुछ तो शांत अवश्य हुए है। वास्तव में यह सबसे आसान ,व सीधा ,सरल उपाय है सभी ग्रहो को शांत करने का ,व डोंगी लोगो के द्वारा फैलाये हुए जालो से बचने का। यह भी हो सकता है की नेट पर आप को यह कंही न मिले ,क्योकि मुझे तो यह प्राचीन पुस्तक से मिला है .
(my originals )
Armour for nine planets
(my originals )
C.D&.C by Ritesh Nagi
9811351049
जो हमारे शरीर में है,वही सब ब्रहमांड में है। All that is outside you is with in you ."यत पिंडे तत ब्रह्माण्डे "
हमारे ऋषि मुनियो ने गहन चिंतन,मनन (deep consideration),से। अपनी गहन खोजो ,गहन ज्ञान, अपने देवतायो से प्राप्त ज्ञान की शूक्ष्मता को इस विधि वत तरीके से हम तक पहुँचाया की बार बार उन्हें प्रणाम करने को जी चाहता है। किस प्रकार 9 ग्रह ,12 राशिया ,व 27 नक्षत्र ,हमारे भूत व भविष्य को अपने अंदर समेटे रखते है। 9 ग्रह ,12 राशिया ,व 27 नक्षत्र ,हमारे भूत व भविष्य को किस प्रकार प्रभावित कर सकते है ,कैसे उन प्रभावो से बचा जा सकता है। जिस प्रकार ये 9 ग्रह ,12 राशिया ,व 27 नक्षत्र ब्रहमांड में स्थित है ठीक उसी प्रकार से यह हमारे शारीर में भी स्थित है। यह ग्रह हमारे जीवन को आर्थिक ,सामाजिक ,व मानसिक रूप से कैसे प्रभावित करेगे ,,शरीर को किस प्रकार ,किस समय ,किन रोगों से प्रभावित करेगे ,मानव का रूप ,रंग , काया , लिंग केसा , होगा ,सभी कुछ ,इन 9 ग्रह ,12 राशिया ,व 27 नक्षत्र ही निर्धारित करते है।
to be continued
to be continued
इस नवग्रह कवच का रोज पाठ करने से आप निश्चित रूप से महसूस करेगे की जो ग्रह आपको तंग कर रहे थे ,कुछ तो शांत अवश्य हुए है। वास्तव में यह सबसे आसान ,व सीधा ,सरल उपाय है सभी ग्रहो को शांत करने का ,व डोंगी लोगो के द्वारा फैलाये हुए जालो से बचने का। यह भी हो सकता है की नेट पर आप को यह कंही न मिले ,क्योकि मुझे तो यह प्राचीन पुस्तक से मिला है .
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C.D&.C by Ritesh Nagi
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Wednesday, 22 February 2017
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अब कोई ग्रह आपको तंग नही करेगा (jyotish) greh dosh nivaran
अब कोई ग्रह आपको तंग नही करेगा (my originals )
C.D&.C by Ritesh Nagi
9811351049
अगर आप इन कामो को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना ले तो कोई ग्रह आपको तंग नही करेगा,
इस बात का यह मतलब नही है की जिंदगी में कोई परेशानी नही आएगी ,,आएगी पर चमत्कारी रूप से या तो वह आपको उतना तंग नही कर पायेगी जो वह कर सकती थी ।
आपकी बहुत सारी समस्याये हल होनी शुरू हो जाएगी ,,,,,आपको ऐसा लगेगा की कोई अदृश्य शक्ति
आपकी मदद कर रही है। इन बातो के अलावा भी अगर संभव तो निचे दिए कुछ कार्य भी अवश्य करे।
1. पीपल पर हर रोज जल चढ़ाये ,यदि रोज संभव न हो तो शनिवार को जल भी चढ़ाय
व शाम के समय शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे दिया जरूर जलाये।
2 . शिवलिंग पर हर रोज जल चढ़ाये ,यदि रोज संभव न हो तो जब भी संभव हो यह कार्य करे.
3. किसी भी जानवर को कभी भी न सताए ,,भूल कर भी नही।
4 . किसी भी व्यक्ति के साथ बुरा बर्ताव नही करे।
5 . जल को बिलकुल भी ,,बिलकुल भी बर्बाद न करे ,
6 अपनी ग्रहस्थी को जितना कलेशो से दूर रखेगे उतनी ही घर में समृद्धि आएगी।
7 नवग्रह कवच का पाठ रोज करे। ↪ (LINK) नवग्रह कवच ( jyotish) Armour for nine planets
8 ARTIFICIAL नकली आभूषण भूल कर भी नाक,कान,गले में न डाले।
9 बाल खुले न रखे इससे घर में अशांति बढ़ती है समृद्धि घटती है।
10 भूल क्र भी कमर के निचे सोना न पहने ,पैरो में तो गलती,गलती से भी नहीं ,वार्ना उसी क्षण से बर्बादी
शुरू हो जाएगी।
11 गहरे हरे ,नीले व काळा कपड़ो से जितना परहेज करोगे उतनी ही जीवन में सुख समृद्धि व शांति आएगी।
12 गायो की से करे ,केतु के लिए काली गाये की सेवा करे। शुक्र के लिए सफ़ेद ,ब्रस्पति के लिए भूरी गाये की।
13 कुत्तो की सेवा करे
14 ,मंदिर जब बी जाये केले ले कर जाये ,केतु को शांत करने के लिए 43 दिन तक रोज ,३ केले मंदिर में रखे
15 कला सफ़ेद कंबल जब भी संभव हो ब्रेससपति या शनिवार नहीं तो कभी भी मंदिर या गरीब को दान दे। ..
16 बरगद के पेड़ पर जल में बहुत थोड़ा दूध व दो दाने चीनी के डाल कर नियमित चढ़ाये व गीली मिटी से माथे पर तिलक लगाए। .
17 चमड़े की जूती ले क्र किसी गरीब को दान दे।
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Sunday, 19 February 2017
घमण्ड (2 )/ BOAST-2/ PROUD-2
घमण्ड (2 )
महाभारत के युद्ध के बाद एक बार जब श्री कृष्ण व सभी पांडव अपनी सभा में बैठकर युद्ध के परिणामों पर चर्चा कर रहे थे तभी ना जाने क्या हुआ की अचानक भीम ने कहा की मेरी गदा ने सबसे अधिक लोगों को दूसरे लोक में पहुंचाया है,,, इसके बाद अर्जुन ने कहा कि नहीं सबसे अधिक मेरे धनुष के बाणों ने नरसंहार किया है व इस युद्ध को जीतने में मदद की है,, अर्जुन के बाद युधिस्टर ने कहा कि नहीं सबसे अधिक मेरे भाले ने
इस युद्ध में दुश्मनों को यमलोक पहुंचाया है,, नकुल और सहदेव भी कहां चुप बैठने वाले थे उन्होंने कहा नहीं,,,,,,, सबसे अधिक लोगों को हमने यमलोक पहुंचाया है,,,,,, श्री कृष्ण जब यह बातें सुनी तो वह समझ गए कि घमंड इन सबके सिर पर चढ़कर बोल रहा है,,,,, अब इन लोगों ने श्रीकृष्ण को कहा कि आप ही बताएं सबसे अधिक किसने युद्ध में अपना कौशल दिखाया है,,,,,, तो श्रीकृष्ण ने कहा मैं तो रथ चला रहा था हम एक काम करते हैं बर्बरीक से पूछते हैं क्योंकि बर्बरीक का कटा सिर युद्ध के मैदान में सबसे बड़े बरगद के पेड़ सबसे ऊपर सिरे पर से सारे युद्ध को देख रहा था,,,,,,, बर्बरीक ही बता सकता है की सबसे अधिक नरसंहार किसके शस्त्र ने किया है,,,,,, सभी युद्ध के मैदान में बर्बरीक के पास पहुंचे और बर्बरीक को अपनी समस्या बताई,,, और बर्बरीक से प्रार्थना की कि वह बताएं की सबसे बड़ा योद्धा कौन है,,,,, बर्बरीक ने जो जवाब दिया उसे सुनकर सभी का घमंड चूर चूर हो गया,,,,, बर्बरीक ने कहा मेरे को सारे युद्ध में केवल कृष्ण का चक्कर ( चक्र) व काली का खप्पर दिखाई दे रहा था,,,,,, चक्र संहार कर रहा था मां काली का खप्पर खून को धरती पर गिरने से बचा रहा था,,,,,
महाभारत के युद्ध के बाद एक बार जब श्री कृष्ण व सभी पांडव अपनी सभा में बैठकर युद्ध के परिणामों पर चर्चा कर रहे थे तभी ना जाने क्या हुआ की अचानक भीम ने कहा की मेरी गदा ने सबसे अधिक लोगों को दूसरे लोक में पहुंचाया है,,, इसके बाद अर्जुन ने कहा कि नहीं सबसे अधिक मेरे धनुष के बाणों ने नरसंहार किया है व इस युद्ध को जीतने में मदद की है,, अर्जुन के बाद युधिस्टर ने कहा कि नहीं सबसे अधिक मेरे भाले ने
इस युद्ध में दुश्मनों को यमलोक पहुंचाया है,, नकुल और सहदेव भी कहां चुप बैठने वाले थे उन्होंने कहा नहीं,,,,,,, सबसे अधिक लोगों को हमने यमलोक पहुंचाया है,,,,,, श्री कृष्ण जब यह बातें सुनी तो वह समझ गए कि घमंड इन सबके सिर पर चढ़कर बोल रहा है,,,,, अब इन लोगों ने श्रीकृष्ण को कहा कि आप ही बताएं सबसे अधिक किसने युद्ध में अपना कौशल दिखाया है,,,,,, तो श्रीकृष्ण ने कहा मैं तो रथ चला रहा था हम एक काम करते हैं बर्बरीक से पूछते हैं क्योंकि बर्बरीक का कटा सिर युद्ध के मैदान में सबसे बड़े बरगद के पेड़ सबसे ऊपर सिरे पर से सारे युद्ध को देख रहा था,,,,,,, बर्बरीक ही बता सकता है की सबसे अधिक नरसंहार किसके शस्त्र ने किया है,,,,,, सभी युद्ध के मैदान में बर्बरीक के पास पहुंचे और बर्बरीक को अपनी समस्या बताई,,, और बर्बरीक से प्रार्थना की कि वह बताएं की सबसे बड़ा योद्धा कौन है,,,,, बर्बरीक ने जो जवाब दिया उसे सुनकर सभी का घमंड चूर चूर हो गया,,,,, बर्बरीक ने कहा मेरे को सारे युद्ध में केवल कृष्ण का चक्कर ( चक्र) व काली का खप्पर दिखाई दे रहा था,,,,,, चक्र संहार कर रहा था मां काली का खप्पर खून को धरती पर गिरने से बचा रहा था,,,,,
घमण्ड / BOAST / PROUD
घमण्ड
एक बार सत्यभामा कृष्ण भगवान सुदर्शन चक्र वा गरुड़ जी आपस में बैठे हुए हंसी ठिठोली कर रहे थे. तभी अचानक सत्यभामा ने कृष्ण भगवान से पूछा है प्रभु की हे प्रभु मेरी एक समस्या का निवारण कीजिए मुझे बताइए की इस धरती पर इस द्वापर युग में या इससे पहले त्रेता युग में मुझसे ज्यादा सुंदर स्त्री क्या हुई है. और पूछा क्या सीता मुझसे अधिक सुंदर थी/ कृष्ण भगवान इससे पहले कि कोई जवाब देते हैं तभी सुदर्शन चक्र ने पूछा हे प्रभु क्या मुझसे ज्यादा शक्तिशाली इस धरती पर द्वापर युग में त्रेता युग में कोई हुआ है अब कृष्ण भगवान और सोच में पड़ गए कि यह अचानक हो क्या रहा है,, इतने में ही गरुड़ जी भी बोल पड़े पूछा हे प्रभु मेरी भी एक समस्या का निवारण कीजिए ,मुझे बताइए क्या द्वापर युग में या त्रेता युग में मुझसे अधिक गति से उड़ने वाला कोई हुआ है अब तो प्रभु सोचों में ही पड़ गए यह हो क्या रहा है यह सब तो घमंड के सागर में गोते लगा रहे हैं,,,,, इन्हें कैसे इस घमंड के सागर से बाहर निकाला जाए,,,,,, किशन भगवान ने उन तीनों से कहा, त्रेता युग वा द्वापर युग से संबंधित बात का अगर कोई जवाब दें सकता है तो वह हनुमानजी हैं जो उस युग में भी उपस्थित थे और आज भी उपस्थित हैं,,,,,, कहीं दूर हिमालय पर तपस्या में लीन हैं उन्हीं को यहां बुला लेते हैं वही आप तीनों की समस्या का निवारण करेंगे,,,,, इतने में गरुड़ जी तुरंत बोल पड़े प्रभु मैं जाकर हनुमान जी को ले आता हूं वह अब तक बूढ़े हो गए होंगे उन्हें काफी समय लग जाएगा,,,, मैं तो अभी जाऊंगा और तुरंत वापस आ जाऊंगा,,,, भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ठीक है गरुड़ जी आप जाइए व हनुमान जी को यहां ले आइए, साथ ही उन्होंने सुदर्शन चक्र से कहा मैं कुछ समय विश्राम करने के लिए अपने कक्ष में जा रहा हूं ,,,,आप ध्यान रखिएगा की कोई मेरे आराम में बाधा ना डालें,,, सुदर्शन चक्र ने कहा प्रभु आप निश्चिंत होकर विश्राम कीजिए,,,, जब तक आप नहीं कहेंगे कोई आपके कक्ष में नहीं जाएगा,,,,, सत्यभामा भी यह सुनकर अपने कक्ष में चली गई,,,, गरुड़ जी बिजली की गति से हनुमान जी के पास पहुंचे,,,,, हनुमान जी तपस्या में लीन थे,,,, शरीर से वृद्धि लग रहे थे हनुमान जी को जैसे ही यह एहसास हुआ की कोई उनके पास आया है उन्होंने आंखें खोली ... गरुण जी को प्रणाम किया व उनके आने का प्रयोजन पूछा. गरुड़ जी ने कहा भगवान श्री कृष्ण ने आपको याद किया है....... हनुमान जी तुरंत चलने के लिए तैयार हो गए,,,,, गरुड़ जी ने कहा आइए आप मेरी पीठ पर सवार हो जाइए मैं तुरंत आपको वहां पहुंचा दूंगा,,,,,, हनुमान जी ने कहा नहीं आप चलिए मैं वहां पहुंच जाऊंगा,,,, गरुड़ जी ने फिर कहा आप वृद्ध हो गए हैं आपको समय लग जाएगा वह सफर में आप थक जाएंगे इसलिए आप मेरी पीठ पर सवार हो जाइए,,,, हनुमान जी ने कहा नहीं आप चलिए मैं वहां पहुंच जाऊंगा,,,, गरुड़ जी ने कहा ठीक है हनुमान जी जैसी आपकी इच्छा,,,,, गरुड़ जी वापसी के लिए उड़ चलें और कुछ ही पलों में भगवान श्री कृष्ण के महल में पहुंच गए,,,,,,,,, वहां पहुंचकर उन्होंने देखा के मुख्य कक्ष में कोई भी नहीं है,,, उन्हें लगा हनुमानजी को आने में कुछ समय लगेगा मैं तब तक भगवान श्रीकृष्ण को उनके आने की सूचना देता हूं,,,, गरुड़ जी जब भगवान श्रीकृष्ण के कक्ष में पहुंचे तो दृश्य देखकर हैरान रह गए की हनुमान जी वहां पहले से ही उपस्थित है उन्हें अपनी बात का जवाब मिल गया,,,, बातों की आवाज सुनकर सत्यभामा भी कक्ष में पहुंची,, सत्यभामा को देखते ही हनुमान जी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा हे प्रभु त्रेता युग में सीता माता , जो उस युग व द्वापर युग की सबसे सुंदर स्त्री थी क्या यह उनकी दासी है,,,, यह बात सुनते ही सत्यभामा का चेहरा उतर गया,,, परंतु उन्हें अपनी बात का जवाब मिल गया,,, अचानक श्रीकृष्ण भगवान ने हनुमान जी से पूछा जब आपने मेरे कक्ष में प्रवेश किया तो क्या किसी ने आप को रोका नहीं,,,,, हनुमान जी ने कहा हां प्रभु जब मैं आप के कक्ष में प्रवेश कर रहा था तो मुझे सुदर्शन ने रोकने की कोशिश की थी परंतु मुझे मेरे प्रभु से मिलने से कौन रोक सकता है ,,,, और यह कहते हुए उन्होंने अपना मुंह खोला मैं सुदर्शन को निकाल कर बाहर रख दिया,,,,,,, तीनों समझ गए कि यह लीला प्रभु ने हमारे अंदर पनप रहे घमंड को तोड़ने के लिए की है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, इस संसार में या किसी भी युग में घमंड किसी भी प्रकार का हो टूटता अवश्य है,,,,,,,,
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एक बार सत्यभामा कृष्ण भगवान सुदर्शन चक्र वा गरुड़ जी आपस में बैठे हुए हंसी ठिठोली कर रहे थे. तभी अचानक सत्यभामा ने कृष्ण भगवान से पूछा है प्रभु की हे प्रभु मेरी एक समस्या का निवारण कीजिए मुझे बताइए की इस धरती पर इस द्वापर युग में या इससे पहले त्रेता युग में मुझसे ज्यादा सुंदर स्त्री क्या हुई है. और पूछा क्या सीता मुझसे अधिक सुंदर थी/ कृष्ण भगवान इससे पहले कि कोई जवाब देते हैं तभी सुदर्शन चक्र ने पूछा हे प्रभु क्या मुझसे ज्यादा शक्तिशाली इस धरती पर द्वापर युग में त्रेता युग में कोई हुआ है अब कृष्ण भगवान और सोच में पड़ गए कि यह अचानक हो क्या रहा है,, इतने में ही गरुड़ जी भी बोल पड़े पूछा हे प्रभु मेरी भी एक समस्या का निवारण कीजिए ,मुझे बताइए क्या द्वापर युग में या त्रेता युग में मुझसे अधिक गति से उड़ने वाला कोई हुआ है अब तो प्रभु सोचों में ही पड़ गए यह हो क्या रहा है यह सब तो घमंड के सागर में गोते लगा रहे हैं,,,,, इन्हें कैसे इस घमंड के सागर से बाहर निकाला जाए,,,,,, किशन भगवान ने उन तीनों से कहा, त्रेता युग वा द्वापर युग से संबंधित बात का अगर कोई जवाब दें सकता है तो वह हनुमानजी हैं जो उस युग में भी उपस्थित थे और आज भी उपस्थित हैं,,,,,, कहीं दूर हिमालय पर तपस्या में लीन हैं उन्हीं को यहां बुला लेते हैं वही आप तीनों की समस्या का निवारण करेंगे,,,,, इतने में गरुड़ जी तुरंत बोल पड़े प्रभु मैं जाकर हनुमान जी को ले आता हूं वह अब तक बूढ़े हो गए होंगे उन्हें काफी समय लग जाएगा,,,, मैं तो अभी जाऊंगा और तुरंत वापस आ जाऊंगा,,,, भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ठीक है गरुड़ जी आप जाइए व हनुमान जी को यहां ले आइए, साथ ही उन्होंने सुदर्शन चक्र से कहा मैं कुछ समय विश्राम करने के लिए अपने कक्ष में जा रहा हूं ,,,,आप ध्यान रखिएगा की कोई मेरे आराम में बाधा ना डालें,,, सुदर्शन चक्र ने कहा प्रभु आप निश्चिंत होकर विश्राम कीजिए,,,, जब तक आप नहीं कहेंगे कोई आपके कक्ष में नहीं जाएगा,,,,, सत्यभामा भी यह सुनकर अपने कक्ष में चली गई,,,, गरुड़ जी बिजली की गति से हनुमान जी के पास पहुंचे,,,,, हनुमान जी तपस्या में लीन थे,,,, शरीर से वृद्धि लग रहे थे हनुमान जी को जैसे ही यह एहसास हुआ की कोई उनके पास आया है उन्होंने आंखें खोली ... गरुण जी को प्रणाम किया व उनके आने का प्रयोजन पूछा. गरुड़ जी ने कहा भगवान श्री कृष्ण ने आपको याद किया है....... हनुमान जी तुरंत चलने के लिए तैयार हो गए,,,,, गरुड़ जी ने कहा आइए आप मेरी पीठ पर सवार हो जाइए मैं तुरंत आपको वहां पहुंचा दूंगा,,,,,, हनुमान जी ने कहा नहीं आप चलिए मैं वहां पहुंच जाऊंगा,,,, गरुड़ जी ने फिर कहा आप वृद्ध हो गए हैं आपको समय लग जाएगा वह सफर में आप थक जाएंगे इसलिए आप मेरी पीठ पर सवार हो जाइए,,,, हनुमान जी ने कहा नहीं आप चलिए मैं वहां पहुंच जाऊंगा,,,, गरुड़ जी ने कहा ठीक है हनुमान जी जैसी आपकी इच्छा,,,,, गरुड़ जी वापसी के लिए उड़ चलें और कुछ ही पलों में भगवान श्री कृष्ण के महल में पहुंच गए,,,,,,,,, वहां पहुंचकर उन्होंने देखा के मुख्य कक्ष में कोई भी नहीं है,,, उन्हें लगा हनुमानजी को आने में कुछ समय लगेगा मैं तब तक भगवान श्रीकृष्ण को उनके आने की सूचना देता हूं,,,, गरुड़ जी जब भगवान श्रीकृष्ण के कक्ष में पहुंचे तो दृश्य देखकर हैरान रह गए की हनुमान जी वहां पहले से ही उपस्थित है उन्हें अपनी बात का जवाब मिल गया,,,, बातों की आवाज सुनकर सत्यभामा भी कक्ष में पहुंची,, सत्यभामा को देखते ही हनुमान जी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा हे प्रभु त्रेता युग में सीता माता , जो उस युग व द्वापर युग की सबसे सुंदर स्त्री थी क्या यह उनकी दासी है,,,, यह बात सुनते ही सत्यभामा का चेहरा उतर गया,,, परंतु उन्हें अपनी बात का जवाब मिल गया,,, अचानक श्रीकृष्ण भगवान ने हनुमान जी से पूछा जब आपने मेरे कक्ष में प्रवेश किया तो क्या किसी ने आप को रोका नहीं,,,,, हनुमान जी ने कहा हां प्रभु जब मैं आप के कक्ष में प्रवेश कर रहा था तो मुझे सुदर्शन ने रोकने की कोशिश की थी परंतु मुझे मेरे प्रभु से मिलने से कौन रोक सकता है ,,,, और यह कहते हुए उन्होंने अपना मुंह खोला मैं सुदर्शन को निकाल कर बाहर रख दिया,,,,,,, तीनों समझ गए कि यह लीला प्रभु ने हमारे अंदर पनप रहे घमंड को तोड़ने के लिए की है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, इस संसार में या किसी भी युग में घमंड किसी भी प्रकार का हो टूटता अवश्य है,,,,,,,,
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पाप का फल किसके खाते में डालू / KARMA PHILOSOPHY
KARMA PHILOSOPHY
पाप का फल किसके खाते में डालू
बार एक यश्स्वी राजा एकब्राह्मणों को महल के बहुत बड़े आँगन में भोजन करा रहा था । व
राजा के रसोइये महल के उसी आँगन में भोजन पका रहे थे ।
ठीक उसी समय एक चील अपने पंजो में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजर रही थी।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी बचाव के लिए चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोइये जो की लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहे थे , किसी को जरा सा भी पता नहीं चला की , उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई है ।
अतः वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मृत्यु हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख व संताप हुआ ।
अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईये .... जिनको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया परन्तु रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना अपना वंहा पर .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । साथ ही उस महिला को तो सच्चाई नही पता ना की वास्तव में हुआ किआ ,बिना सच जाने वह राजा को दोष कैसे दे सकती हे। इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव व बिना बात की तह (डेप्थ ) तक जाये से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....
इसलिये आज से ही संकल्प कर लें कि किसी के भी और किसी भी पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से कभी नहीं करना यानी किसी की भी बुराई या चुगली कभी नहीं करनी हैं ।
लेकिन यदि फिर भी हम ऐसा करते हैं तो हमें ही इसका फल आज नहीं तो कल जरूर भुगतना ही पड़ेगा। KARMA PHILOSOPHY
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पाप का फल किसके खाते में डालू
बार एक यश्स्वी राजा एकब्राह्मणों को महल के बहुत बड़े आँगन में भोजन करा रहा था । व
राजा के रसोइये महल के उसी आँगन में भोजन पका रहे थे ।
ठीक उसी समय एक चील अपने पंजो में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजर रही थी।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी बचाव के लिए चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोइये जो की लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहे थे , किसी को जरा सा भी पता नहीं चला की , उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई है ।
अतः वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मृत्यु हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख व संताप हुआ ।
अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईये .... जिनको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया परन्तु रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना अपना वंहा पर .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । साथ ही उस महिला को तो सच्चाई नही पता ना की वास्तव में हुआ किआ ,बिना सच जाने वह राजा को दोष कैसे दे सकती हे। इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव व बिना बात की तह (डेप्थ ) तक जाये से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....
इसलिये आज से ही संकल्प कर लें कि किसी के भी और किसी भी पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से कभी नहीं करना यानी किसी की भी बुराई या चुगली कभी नहीं करनी हैं ।
लेकिन यदि फिर भी हम ऐसा करते हैं तो हमें ही इसका फल आज नहीं तो कल जरूर भुगतना ही पड़ेगा। KARMA PHILOSOPHY
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कमाल /
कमाल
एक गांव के बाहर एक सिद्ध साधु रहता था , उसके द्वार से कभी कोई निराश नही लोटता था, उसी की झोपड़ी के बाहर उसी का एक सेवक रोज सारा दिन साधु की कुटिया के बाहर बैठा रहता ,जो सेवा उसके हिस्से आती ,उसे चुप चाप कर देता ,कभी किसी से कुछ नही कहता ,जो खाने को मिलता खा लेता नही मिलता तो चुप चाप सेवा करता रहता ,उसकी सेवा बेमिसाल थी। उसी गांव की एक औरत की शादी को की साल हो गए थे। उसके यहाँ कोई बच्चा नही था ,काफी सालो से वह साधु महाराज के पास भी आशीर्वाद लेने जाती थी परन्तु वहाँ से भी हर बार निराश ही लोटती थी. इस बार उसने ठान लिया की वह साधु से बच्चा होने का आशीर्वाद ले कर ही लौटेगी। वह साधु के पास गई खूब गिडगडाई ,आप सभी की झोली भरते हो मुझे भी अपने खजाने में से एक पुत्र दे दो। साधु को उस पर दया आई उसने अपने भगवान का धयान लगाया ,काफी देर बाद जब उसने आँखे खोली ,तो उसके चेहरे पर घोर निराशा थी ,,,उसने कहा पुत्री में तुम्हे आशीर्वाद नही दे सकता ,,मेने प्रभु से बात की है ,,उन्होने कहा है इस जन्म में यह नही हो सकता है। पुत्री मुझे माफ़ कर दो। वह हार कर बुरी तरह से रोती हुई बाहर की तरफ चल पड़ी। जब वह रोती हुई जा रही थी तो उस सेवक ने जो हर रोज वहां बाहर बैठा रहता था ,उसे रोक कर पूछा ,बहन किओ इतना रो रही हो ,उसने रोते हुए उसे सारी बात बताई। न जाने उस सेवक के मन में किआ आया,उसने उसे कहा जा जल्दी ही तेरी गोद में पुत्र खेलेगा। वह रोती हुई वहां से चली गई ,,लगभग एक साल बाद वह जब अपने पुत्र के साथ साधु यहाँ माथा टेकने व बच्चे को आशीर्वाद दिलवाने के लिए आई तो साधु भी हैरान रह गया ,,उसने उससे पूछा यह कैसे संभव हुआ,,,क्योकि मुझे तो सवयं प्रभु ने कहा था की तुम्हारी गोद नही भरी जा सकती है ,,,उस औरत ने कहा महाराज मुझे किया पता में तो रोते हुए जा रही थी ,,तो जो आप के बहार वो जो सेवक हमेशा चुपचाप बैठे रहते है उन्होने कहा था रो मत,, अगली बार जब तू यहाँ आएगी तो पुत्र के साथ आएगी ,, बस महाराज और यह में अब यहाँ अपने खुद के पुत्र के साथ माथा टेकने व आशीर्वाद लेने आई हु। साधु बहुत ही हैरान हुआ ,उसने बच्चे व उसकी माँ को आशीर्वाद दिया ,जब वह औरत वहाँ से चली गई तो साधु फिर से अपने ध्यान कक्ष में गया ,प्रभु का धयान लगाया ,प्रभु से जब बात होनी शुरू हुई तो साधु ने पूछा प्रभु मेने आप को उस औरत को बच्चा देने के लिए कहा तो आप ने मुझे कहा इस जन्म में उसे बच्चा नही हो सकता फिर आप ने उस की गोद अब कैसे भर दी और मुझे झूठा साबित करवा दिया। … तब प्रभु ने कहा नही ऐसी बात नही है जब मेने तुम्हे कहा था बच्चा नही हो सकता वह बात सच थी. लेकिन जब वह औरत रोती हुई जा रही थी तो तुम्हारे बाहर बैठे उस सेवक उसे कह दिया जा तेरे बेटा हो जायेगा ,,तो मैं खुद परेशान हो गिया में कब से इन्तजार कर रहा था की तेरा वो सेवक कुछ मांगे और में उसे दू अब उसने माँगा भी तो उस औरत के लिए तो मुझे कुछ फरिश्ते भेज कर उस औरत के शरीर में गर्भ बनवाना पड़ा जो की उसके नही था ताकि तेरे वा मेरे उस सेवक की वो बात पूरी हो सके जो उसने पहली बार मुझसे मांगी है। में कब से तरस रहा था उसे कुछ देने के लिए। …। to be continue
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एक गांव के बाहर एक सिद्ध साधु रहता था , उसके द्वार से कभी कोई निराश नही लोटता था, उसी की झोपड़ी के बाहर उसी का एक सेवक रोज सारा दिन साधु की कुटिया के बाहर बैठा रहता ,जो सेवा उसके हिस्से आती ,उसे चुप चाप कर देता ,कभी किसी से कुछ नही कहता ,जो खाने को मिलता खा लेता नही मिलता तो चुप चाप सेवा करता रहता ,उसकी सेवा बेमिसाल थी। उसी गांव की एक औरत की शादी को की साल हो गए थे। उसके यहाँ कोई बच्चा नही था ,काफी सालो से वह साधु महाराज के पास भी आशीर्वाद लेने जाती थी परन्तु वहाँ से भी हर बार निराश ही लोटती थी. इस बार उसने ठान लिया की वह साधु से बच्चा होने का आशीर्वाद ले कर ही लौटेगी। वह साधु के पास गई खूब गिडगडाई ,आप सभी की झोली भरते हो मुझे भी अपने खजाने में से एक पुत्र दे दो। साधु को उस पर दया आई उसने अपने भगवान का धयान लगाया ,काफी देर बाद जब उसने आँखे खोली ,तो उसके चेहरे पर घोर निराशा थी ,,,उसने कहा पुत्री में तुम्हे आशीर्वाद नही दे सकता ,,मेने प्रभु से बात की है ,,उन्होने कहा है इस जन्म में यह नही हो सकता है। पुत्री मुझे माफ़ कर दो। वह हार कर बुरी तरह से रोती हुई बाहर की तरफ चल पड़ी। जब वह रोती हुई जा रही थी तो उस सेवक ने जो हर रोज वहां बाहर बैठा रहता था ,उसे रोक कर पूछा ,बहन किओ इतना रो रही हो ,उसने रोते हुए उसे सारी बात बताई। न जाने उस सेवक के मन में किआ आया,उसने उसे कहा जा जल्दी ही तेरी गोद में पुत्र खेलेगा। वह रोती हुई वहां से चली गई ,,लगभग एक साल बाद वह जब अपने पुत्र के साथ साधु यहाँ माथा टेकने व बच्चे को आशीर्वाद दिलवाने के लिए आई तो साधु भी हैरान रह गया ,,उसने उससे पूछा यह कैसे संभव हुआ,,,क्योकि मुझे तो सवयं प्रभु ने कहा था की तुम्हारी गोद नही भरी जा सकती है ,,,उस औरत ने कहा महाराज मुझे किया पता में तो रोते हुए जा रही थी ,,तो जो आप के बहार वो जो सेवक हमेशा चुपचाप बैठे रहते है उन्होने कहा था रो मत,, अगली बार जब तू यहाँ आएगी तो पुत्र के साथ आएगी ,, बस महाराज और यह में अब यहाँ अपने खुद के पुत्र के साथ माथा टेकने व आशीर्वाद लेने आई हु। साधु बहुत ही हैरान हुआ ,उसने बच्चे व उसकी माँ को आशीर्वाद दिया ,जब वह औरत वहाँ से चली गई तो साधु फिर से अपने ध्यान कक्ष में गया ,प्रभु का धयान लगाया ,प्रभु से जब बात होनी शुरू हुई तो साधु ने पूछा प्रभु मेने आप को उस औरत को बच्चा देने के लिए कहा तो आप ने मुझे कहा इस जन्म में उसे बच्चा नही हो सकता फिर आप ने उस की गोद अब कैसे भर दी और मुझे झूठा साबित करवा दिया। … तब प्रभु ने कहा नही ऐसी बात नही है जब मेने तुम्हे कहा था बच्चा नही हो सकता वह बात सच थी. लेकिन जब वह औरत रोती हुई जा रही थी तो तुम्हारे बाहर बैठे उस सेवक उसे कह दिया जा तेरे बेटा हो जायेगा ,,तो मैं खुद परेशान हो गिया में कब से इन्तजार कर रहा था की तेरा वो सेवक कुछ मांगे और में उसे दू अब उसने माँगा भी तो उस औरत के लिए तो मुझे कुछ फरिश्ते भेज कर उस औरत के शरीर में गर्भ बनवाना पड़ा जो की उसके नही था ताकि तेरे वा मेरे उस सेवक की वो बात पूरी हो सके जो उसने पहली बार मुझसे मांगी है। में कब से तरस रहा था उसे कुछ देने के लिए। …। to be continue
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नवग्रह कवच
कर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है
orignal कर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है
एक बहुत ही यशस्वी राजा था। वह अपने हर कार्य में सर्वश्रेस्ट था। प्रजा का खूब ध्यान रखता था ,उन्हें कभी भी किसी भी बात के लिये तंग नही करता था,धर्मत्मा व दयालु था ,,उसकी एक आदत यह भी थी की वह सप्ताह में एक दिन गोशाला की सफाई ,गायों को नहलाने का कार्य भी स्वयं ही करता था ,एक बार वह गोशाला में अपने कार्य में लगा हुआ था ,,तबी एक साधू भिक्षा मांगता हुआ गोशाला तक आ गया ,उसने राजा से भिक्षा मांगी ,राजा अपने ध्यान में मग्न सफाई कर रहा था, शायद कुछ खिजा भी हुआ था ,उसने दोनों हाथो से उठा कर गोबर साधु की झोली में डाल दिया ,साधू आशीर्वाद देते हुए वंहा से चला गिया ,,.राजा को कुछ देर बाद अपनी गलती का एहसास हुआ ,राजा ने सैनिको को साधु को ढूढ़ने के लिए भेजा परन्तु साधु नही मिला।
इस बात को ना जाने कितना समय बीत गया ,,एक बार राजा शिकार करने जंगल में गया हुआ था ,खूब थकने पर वह पानी की तलाश में भटकते भटकते एक कुटिया के बाहर पहुंचा ,, कुटिया के अंदर झांकने पर उसने देखा वहां एक साधु धयान में मग्न बैठा था ,वहीं उसके पास एक खूब बड़ा गोबर का ढेर लगा हुआ था ,राजा अचंभित व परेशान हो कर सोचने लगा की साधु के चेहरे का तेज कितना अधिक है, पर यह गोबर का ढेर क्यों है यहाँ ,,,राजा साधु के पास गया ,प्रणाम किआ ,जल माँगा व पिया ,और पूछा साधू से ,अगर आप बुरा ना माने तो क्या में जान सकता हु की आप के चेहरे का तेज कहता है की आप एक तपस्वी है ,,फिर आप की कुटिया में इतनी गंदगी किओ है ,साधू ने कहा राजन हम जीवन मै जो कुछ बी जाने या अनजाने ,अच्छा या बुरा करते है वह हमें इसी जन्म में या अगले जनम में की गुना हो कर मिलता है ,यह गोबर भी किसी दयालु ने दान में दिया है,राजा को झटका लगा और सारी घटना कई की साल पहले की स्मरण हो आई।
राजा ने साधू से क्षमा मांगी व प्रायश्चित का मार्ग पूछा ,साधु ने कहा राजन इस गोबर को तुम्हें खा कर समाप्त करना है ,,इसे जला कर राख में बदल लो व थोड़ा थोड़ा खा कर समाप्त करो ,राजा ने कहा
साधु महाराज कोई और उपाय बताये क्योकि थोड़ा थोड़ा खा कर समाप्त करने में की वर्ष बीत जायेगे ,साधु ने कहा राजन और उपाए तुम कर नही पाओगे ,राजा अड़ गया तो साधु ने कहा
राजन कोई कार्य ऐसा करो की तुम्हारी चारो कुंठो में बदनामी हो , इस से इसी जन्म में तुम्हारे इस कार्य का कुछ तो भार अवश्य ही कम हो जायेगा ,,राजा महल में गया बहुत सोचने के बाद अगले दिन सुबह उसने राज्य की सबसे सुंदर वेश्या को बुलाया ,वह खूब सजदज कर आई ,राजा उस वेश्या को ले कर रथ पर पूरे राज्य का भर्मण करने निकल पड़ा ,,जिसने भी राजा वेश्या के साथ देखा वह आचम्भित रह गया ,,व साथ ही थू थू करने लगा ,,प्रजा कहने लग पड़ी लगता है राजा का दिमाग खराब हो गया है.,,,,राजा ने इस प्रकार की महीनो तक किया ,काफी दिन घूमने के बाद राजा जब गोबर के ढेर के को देखने गया तो उसने पाया अब वहां केवल शायद उतना ही गोबर रह गया है जो उसने साधु को दिया था,, वह और भी कई दिनों के उसी प्रकार के कार्य के बाद भी समाप्त नही हो रहा था। ।अचानक एक दिन साधु महल में आया उसने राजा से कहा राजन यह तो मूल है इसे तो तुम्हे खा कर ही समाप्त करना पड़ेगा ,,राजाने उस गोबर को राख में बदला व खा कर समाप्त किया।
शिक्षा : हमे अपने किये हर कर्म का फल हर हाल में भुगतना पड़ता है।
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नवग्रह कवच
Friday, 17 February 2017
टोपी वाला और बंदर की नई कहानी
astro jyotish coaching kid's story Best home remedies
एक गांव में एक टोपी वाला रहता था ,गाँव गाँव जा कर टोपिया बेचा करता था ,एक बार वो जब वापिस घर जा रहा था ,रास्ते में विश्राम के लिए एक पेड़ के नीचे रुका ,उसे नींद आ गई ,जब वह सो कर उठा ,तो सारी टोपिया गायब थी , उसने इधर उधर देखा कुछ नजर नही आया ,आचनक जब उसने ऊपर देखा तो पाया सारी टोपिया बंदरो के पास है./ उसने सोचा टोपिया वापिस कैसे ली जाये ,उसको अपने पुरखो की बात याद आई की बंदर स्वभाव के नकलची होते है सो उसने अपनी टोपी उतारी ,,बंदरो की तरफ मुँह कर उन्हें हिला हिला कर टोपी दिखाई ,व फिर टोपी जमीं पर पटख दी ,कुछ देर बाद बंदरो ने भी टोपिया नीचे फेंकनी शुरू कर दी ,,टोपी वाले ने टोपिया उठाई ,व मुस्कराते हुए अपने घर चला गया ,,
यह तक की कहानी आप ने कई बार पढ़ी व सुनी होगी अब अब पड़े आगे की कहानी व आनंद उठाये
जब टोपी वाला घर पहुंचा तो उसने अपने बच्चो को सारी कहानी विस्तार से बताई ,किस्मत से उसका एक पुत्र लगभग दस साल बाद जो की टोपियों का ही वयवसाय था। उसी जंगल से गुजर (जा ) रहा था ,थके होने के कारण विश्राम करने की सोची ,और किस्मत का खेल था की उसी पेड़ के नीचे करने लगा झ कभी उसके पिता ने विश्राम किया था ,,,टोपी वाले के बेटे को भी नींद आ गई ,,जब वह उठा ,तो टोपिया अपने स्थान पर नही थी। उसने इधर उधर देखा तो पाया की साडी टोपिया बंदरो के पास है ,कोई उनके सिर पर है ,किसी टोपी से वो खेल रहे है ,,टोपी वाले का बेटा परेशान हो गया ,अचानक उसे उसे आपने पिता की दी सीख याद आई ,,उसने अपनी टोपी उतारी ,बंदरो को दिखा दिखा कर नीचे पटख दी व इन्तजार करने लगा की कब बंदर टोपिया नीचे फेंकेंगे ,,अचानक उसने देखा एक बंदर चुपचाप आया और द्वारा फेंकी टोपी उठा कर तेजी से भाग गया ,उसके वह हैरान रह गया जब बंदरो के मुखिया उससे कहा हमारे पूर्वाज मुर्ख थे हम नही है।
TO BE CONTINUED...........
THANKS FOR YOUR PATIENCE
टोपी वाला और बंदर की नई कहानी
TO BE CONTINUED...........
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