🧠 ‘KBC के बच्चे इशित भट्ट का मज़ाक मत उड़ाओ’: चंडीगढ़ के फाउंडर बोले – भारत के बच्चे झेल रहे हैं चीन से शुरू हुई ‘सिक्स पॉकेट सिंड्रोम’ की मार
(इशित भट्ट अमिताभ बच्चन के साथ हॉट सीट पर एक बच्चे के चारों ओर दादा-दादी और माता-पिता के स्नेह की इलस्ट्रेशन (six pockets concept
🧩 कहानी की शुरुआत:
टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति (KBC) में जब 12 साल के इशित भट्ट हॉट सीट पर बैठे, तो हर किसी की निगाह उन पर टिक गई। आत्मविश्वास से लबरेज, तेज बोलने वाले और अपनी बात में ठहराव रखने वाले इशित ने सोशल मीडिया पर खूब चर्चा बटोरी।
लेकिन जैसे-जैसे वीडियो वायरल हुआ, कई लोगों ने उन पर मीम्स बनाना शुरू कर दिया — कोई कह रहा था “बहुत ओवर स्मार्ट है”, तो कोई “बचपन में इतना एटीट्यूड क्यों?”।
इसी बीच, चंडीगढ़ के एक जाने-माने फाउंडर और मोटिवेशनल स्पीकर ने सोशल मीडिया पर एक लंबा पोस्ट लिखकर लोगों से अपील की —
“इशित भट्ट जैसे बच्चों का मज़ाक उड़ाना बंद करें। वो किसी बीमारी का नहीं, बल्कि समाज की एक नई परवरिश प्रणाली का नतीजा हैं — जिसे आज ‘सिक्स पॉकेट सिंड्रोम’ कहा जाता है।”
💡 क्या है ‘Six Pocket Syndrome’?
‘सिक्स पॉकेट सिंड्रोम’ (Six Pocket Syndrome) शब्द पहली बार चीन में इस्तेमाल हुआ था।
इसका मतलब है — एक अकेले बच्चे पर छह जेबों का (Six Pockets = माता-पिता + दादा-दादी + नाना-नानी) प्यार, पैसा और अपेक्षाएँ केंद्रित होना।
जब किसी परिवार में सिर्फ एक ही बच्चा होता है, तो उसका हर कदम, हर बात, हर इच्छा छह बड़े लोगों की निगाह में होती है।
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उसे हर चीज़ तुरंत मिल जाती है
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उसकी हर गलती को प्यार से ढक दिया जाता है
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उसे कठिनाइयों का सामना करने का मौका नहीं मिलता
धीरे-धीरे यह प्यार दबाव और परफेक्शन की चाहत में बदल जाता है। बच्चे के अंदर आत्मविश्वास तो भर जाता है, लेकिन भावनात्मक परिपक्वता (emotional maturity) और विनम्रता (humility) की कमी हो जाती है।
🌏 चीन से भारत तक – एक नई पीढ़ी का दबाव
यह ट्रेंड चीन में 1980 के दशक में शुरू हुआ, जब वहां “One Child Policy” लागू थी।
हर परिवार में सिर्फ एक ही बच्चा होता था, और उसके चारों ओर छह वयस्क — माता-पिता और दोनों जोड़ों के दादा-दादी — उसे प्यार और ध्यान से घेर लेते थे।
आज भारत के शहरी इलाकों में भी वही तस्वीर दोहराई जा रही है।
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कम बच्चे, ज़्यादा साधन
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डिजिटल दुनिया में पलते हुए
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असली संघर्षों से दूर, पर अपेक्षाओं से घिरे हुए
चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में यह “सिक्स पॉकेट जेनरेशन” तेजी से बढ़ रही है।
🧒 इशित भट्ट क्यों ट्रेंड में आए?
KBC के इस एपिसोड में इशित ने बड़े आत्मविश्वास से अमिताभ बच्चन से बातें कीं।
उन्होंने चुटकुले भी सुनाए, अपने सपनों के बारे में बताया और बिना हिचक के जवाब दिए।
कुछ लोगों को यह आत्मविश्वास “ओवर स्मार्टनेस” लगा, जबकि कुछ ने कहा — “यह बच्चा तो जीनियस है।”
सोशल मीडिया पर मीम्स और रील्स की बाढ़ आ गई।
लेकिन असली सवाल यह नहीं कि इशित कैसे हैं — बल्कि यह है कि हम किस तरह के बच्चों को तैयार कर रहे हैं?
🧭 फाउंडर का कहना है – बच्चे गलती नहीं, समाज की परछाई हैं
चंडीगढ़ के इस फाउंडर ने लिखा —
“हम बच्चों को सुविधाएँ, गैजेट्स और क्लासेस दे रहे हैं, लेकिन असल दुनिया से जोड़ना भूल रहे हैं। इशित जैसे बच्चे हमारी शिक्षा प्रणाली और पारिवारिक सोच का परिणाम हैं। मज़ाक उड़ाने के बजाय हमें यह सोचना चाहिए कि क्या हम उन्हें भावनात्मक रूप से मज़बूत बना रहे हैं?”
उन्होंने कहा कि बच्चों को “perfect” नहीं, बल्कि empathetic और resilient (संवेदनशील और दृढ़) बनाना ज़रूरी है।
💬 सोशल मीडिया पर लोगों की राय
कुछ लोगों ने फाउंडर की बात का समर्थन करते हुए लिखा —
“बिलकुल सही कहा, ये बच्चे हमारी पीढ़ी की सोच का नतीजा हैं।”
वहीं कुछ यूज़र्स ने कहा —
“इशित जैसा बच्चा आज के डिजिटल युग की पहचान है — आत्मविश्वास से भरा लेकिन भावनाओं को छिपाने वाला।”
🌱 बदलाव की ज़रूरत
‘सिक्स पॉकेट सिंड्रोम’ से बाहर निकलने का मतलब यह नहीं कि प्यार या सुविधा कम की जाए — बल्कि
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बच्चों को असफलता का अनुभव करने देना,
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उन्हें दूसरों से जोड़ना,
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और आत्मनिर्भर बनाना ज़रूरी है।
क्योंकि दुनिया को सिर्फ “टॉपर” नहीं, बल्कि समझदार इंसान चाहिए।
🏁 निष्कर्ष
इशित भट्ट का मज़ाक उड़ाने से पहले हमें अपने समाज के आईने में झांकना चाहिए।
आज के बच्चे किसी गलती के नहीं, बल्कि हमारी परवरिश और सोच की नई दिशा के नतीजे हैं।
अगर हम उन्हें सही तरीके से मार्गदर्शन दें, तो वही बच्चे कल देश का भविष्य बनेंगे।
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KBC के 12 साल के प्रतिभागी इशित भट्ट के वायरल एपिसोड पर चंडीगढ़ के फाउंडर ने कहा – बच्चों को ट्रोल नहीं, समझने की ज़रूरत है। जानिए क्या है चीन से शुरू हुआ ‘सिक्स पॉकेट सिंड्रोम’ और क्यों भारत के बच्चे इससे प्रभावित हो रहे हैं।
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