Wednesday, 1 November 2017

दोहे

                                                     दोहे



सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।।

तुलसी बैर सनेह दोउ रहित बिलोचन चारि।
सुरा सवेरा आदरहिं निंदहिं सुरसरि बारि।।

गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच ।
हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच ।।

अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि अपशब्द एक ऐसा बीज है जो लड़ाई झगड़े, दुःख एवम् हत्या के क्रूर विचार के अंकुर को व्यक्ति के हृदय में रोपित करता है। अतः जो व्यक्ति इनसे हार मान कर अपना मार्ग बदल लेता है वो संत हो जाता है परंतु जो इनके साथ जीता है वह नीच होता है ।


कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥

आवत गारी एक है, उलटत होई अनेक ।
कह कबीर नहीं उलटिए, वही एक की एक ॥

अर्थ: संत कबीरदास जी कहते हैं कि जब गाली आती है तब वह एक ही होती है । उसके उलट कर उत्तर देने से वह कई रूप ले लेती है, अर्थात गलियों का सिलसिला शुरू हो जाता है । अतः गलियों का उलटकर उत्तर नहीं देना चाहिए ऐसा करने से वह एक ही रहेगी और स्वतः ही नष्ट हो जाएगी ।


चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए,
वैद बेचारा क्या करे, कितना मरहम लगाए ।

"नमन खमन और दीनता, सब को आदर भाव ।
कहैं कबीर सोई बडे, जा में बडो सुभाव ॥"
संत कबीर दास जी कहते हैं कि नम्र भाव, क्षमा करने की क्षमता, दया भाव एवं सभी का आदर करने का गुण ये सभी बड़े स्वभाव वालों के ही आभूषण होते हैं, ऐसे बड़े स्वभाव वाले व्यक्ति ही सही अर्थों में बड़े होते हैं ।

ऐसी गति संसार की, ज्यों गाडर की ठाट ।
एक पडा जो गाड में, सभी गाड में जात ॥

अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि इस विश्व के प्राणियों की चाल भी किसी भेंड़ के झुण्ड के समान ही है, जिस प्रकार एक भेंड़ के पीछे पीछे पुरे झुण्ड की भेंड़ें गङ्ढे में गिरती चली जाती हैं उसी प्रकार इस संसार में मनुष्य भी एक दूसरे को देख कर बिना सोचे समझे गलत राह को चुन लेता हैं ।


आव गया आदर गया, गया नैन सों नेह ।
कहैं कबीर तीनों गये, जब हि कहा कछु देय ॥”
अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं की वाणी में स्वागत की मधुरता, सम्मान की भावना और आँखों से छलकता प्रेम ये तीनों किसी भी प्रेमी जन की आँखों से लुप्त हो जाते हैं जब आप उनके सामने अपनी आवश्यकता के लिए कुछ मांगने लगते है।

कबीर बैरी सबल है, एक जीव रिपु पांच ।
अपने अपने स्वाद को, बहुत नचावे नाच ॥

अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि हे मनुष्य तू सावधान रह क्युंकि तू तो अकेला है परन्तु तेरे शत्रु पांच जो की ये तेरी पांच इन्द्रियां हैं, जो अपने लाभ के लिए तुझे भिन्न भिन्न प्रकार के प्रलोभन देंगी और तुझे यहाँ वहाँ भटकने पर मजबूर करेंगी । अतः तू इनका दास न बन अपितु इन्हें अपना दास बना ।



बहुत गई थोडी रही, व्याकुल मन मत होय ।
धीरज सब का मित्र है, करी कमाई न खोय ॥

अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि जीवन की कठिनाइयों को देख कर व्याकुल नहीं होना चाहिए । अपने मन को नियंत्रित करते हुए उसे यही समझाने का प्रयत्न करना चाहिए कि जितनी कठिनाइयों का सामना किया अब बस उसका कुछ ही भाग शेष रह गया है अतः तनिक और धैर्य रखे । कहीं ऐसा न हो कि थोड़ी देर की जल्दबाज़ी में अब तक का परिश्रम व्यर्थ हो जाए ।


"सबकी सुने अपनी कहे, कह सुन एक जो होय ।
कहैं कबीर ता दास का, काज न बिगडे कोय ॥"

अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति पहले सबके विचारों को शांतिपूर्वक सुनता है एवं तत्पश्चात अपने विचारों को व्यक्त करता है तथा समझदारी एवं सर्वसहमति से किसी चर्चा को निर्णायक अंत देता है, ऐसे व्यक्ति का कोई काम कभी विफल नहीं होता है ।

करनी बिन कथनी कथे, अज्ञानी दिन रात ।
कूकर सम भूकत फिरे, सुनी सुनाई बात ॥

अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि अज्ञानी एवं मूर्ख व्यक्ति काम कम और बातें अधिक करते हैं और सुनी सुनाई बातों को ही रटते हुए कुत्तों कि तरह हर गली में जा कर भोंकते रहते हैं उनका अपना कोई तर्क नहीं होता है ।

रोष न रसना खोलिए, बरु खोलिअ तरवारि
सुनत मधुर परिनाम हित बोलिअ बचन बिचारी ।।

अर्थ: संत शिरोमणि तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध में कभी भी जुबान नहीं खोलनी चाहिए; इसकी अपेक्षा तलवार निकलना अधिक उचित है । सोच समझकर ऐसे मीठे वचनों का प्रयोग करना चाहिए, जो हितकारी और प्रसन्नता देनेवाले हो ।

प्रेम बिना धीरज नहीं, बिरह बिना बैराग ।
सतगुरु बिना मिटते नहीं, मन मनसा के दाग ॥

अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि मन में जिसके ह्रदय में प्रेम न हो वह धैर्य का अर्थ भी नहीं समझ सकता है और बिरह कि वेदना को केवल एक बैरागी ही समझ सकता है । जिस प्रकार प्रेम और धीरज एवं बिरह और बैराग का सम्बन्ध होता है उसी प्रकार गुरु और शिष्य के ह्रदय में सम्बन्ध होता है, बिना गुरु के शिष्य के मन से इच्छाओं को कोई और नहीं मिटा सकता है ।

एक शब्द सुख खानि है, एक शब्द दुःख रासि ।
एक शब्द बंधन कटे, एक शब्द गल फांसि ॥"

संत कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे द्वारा कहे गए एक शब्द किसी के लिए सुखों का सागर बन सकता है तो वही एक शब्द ही किसी को दुःख देने के लिए भी पर्याप्त है । किसी के द्वारा कहे गए मात्र एक शब्द se ही किसी के सभी कष्ट एवं बंधन काट जाते हैं तो कभी एक ही शब्द किसी के लिए जीवन भर का कष्ट हो जाता है अतः व्यक्ति को हर शब्द को बोलने से पहले विचार कर लेना चाहिए ।


चिड़िया चोंच भरि ले गई, घट्यो न नदी को नीर ।
दान दिये धन ना घटे, कहि गये दास कबीर ॥

वक्ता ज्ञानी जगत में, पंडित कवि अनंत ।
सत्य पदारथ पारखी, बिरले कोई संत ॥

अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि इस जगत में वक्ता, ज्ञानी, पंडित एवं कवि आपको बहुतेरे मिल सकते हैं परन्तु सत्य को परखने का हुनर रखने वाला सद्पुरुष कोई बिरला ही मिल सकता है।


धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए॥

चिड़िया चोंच भर ले गई, नदी को घट्र्यो न नीर ।
दान दिए धन ना घटे, कह गए संत कबीर ।।


यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान
शीश दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान ।

कबीरा लहरें समुद्र की, मोती बिखरे आये ।
बगुला परख न जानही, हंसा चुन चुन खाए ।।

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जीवन हर क्षण हमे सफलता के अवसर प्रदान करता रहता है अंतर केवल उसको पहचानने का है, ठीक वैसे ही जैसे समुद्र कि लहरें अपने साथ मोतियों को किनारों तक बहा कर लाती हैं जिन्हें बगुला पहचानना नहीं जानता परन्तु हंस उन मोतियों को कंकडों के बीच से चुन चुन कर खाता है ।

धन रहे न योवन रहे, रहे गाँव न धाम ।
कहे कबीरा बस जस रहे, कर दे किसी का काम ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं की धन, यौवन और समाज सब नश्वर हैं, अनश्वर केवल व्यक्ति के द्वारा किया गया भला काम ही उसके नाम को अमर रखता है इसलिए इंसान को दूसरों की भलाई के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

वृक्ष ये बोला पात से सुन पत्ते मेरी बात,
इस घर की यह रीती है इक आवत इक जात ।

अर्थ: सभी जीव इस संसार रुपी वृक्ष के पत्तों के सामान हैं जिस प्रकार वृक्ष पर पत्ते लगते और झड़ते रहते हैं ठीक उसी प्रकार इस संसार में जीवात्मा का आना और जाना भी लगा रहता है।

कबीरा धीरज के धरे हाथी मन भर खाए,
टूक टूक बेकार में स्वान घर घर जाये ।

अर्थ: संत कबीर जी कहते हैं की मनुष्य को धीरज रख कर ही काम किसी काम को करना चाहिए जल्दबाजी में किया गया काम त्रुटिपूर्ण ही होता है। जिस प्रकार हाथी जो की धीरे धीरे अपना भोजन खाता है जिससे वो पूर्ण तृप्ति के साथ भोजन को ग्रहण कर सकता है जबकि दूसरी ओर कुत्ता इधर उधर भागता फिरता है और हर घर में सिर्फ एक टुकड़ा ही पाता है ।

परनारी का राचणौ, जिसकी लहसण की खानि ।
खूणैं बेसिर खाइय, परगट होइ दिवानि ॥

अर्थ: परनारी का साथ लहसुन खाने के जैसा है, भले ही कोई किसी कोने में छिपकर खाये, वह अपनी बास से प्रकट हो जाता है ।

कबीरा इस संसार का झूठा माया मोह ।
जिस घर जितनी बधाइयाँ उस घर उतना अंदोह ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं की इस जगत में सांसारिक सुखों का जो मोह मनुष्य ने पाल रखा है वो सब सिर्फ एक मिथ्या है क्योंकि इश्वर ने सभी को सुख और दुःख सामान मात्र में दिए हैं, जहाँ जितना सुख होता है उतना ही दुःख भी होता है ।

तन को सब जोगी करे, मन को करे न कोई
सहजे सब कुछ पाइए जो मन जोगी होए।

अर्थ: व्यक्ति बाह्य आडम्बरों खुद को सभ्य अथवा महान दिखने के भिन्न-भिन्न प्रयत्न करता रहता है परन्तु सद्विचारों को अपने मन में नहीं उतारता है यदि वह अपने मन को भी पवित्र एवं विचारों को शुद्ध कर ले तो उसे सब कुछ अत्यंत ही सहजता से प्राप्त हो जायेगा ।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग ।
चन्दन विष व्याप्त नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।।

अर्थ : रहीम जी कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं, उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती । जहरीले सांप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते ।

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार ।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार ।।

अर्थ : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए, जिस प्रकार यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए ।

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग ।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग ।।

अर्थ : रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है । जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है ।

रहिमन सीधी चाल सों, प्यादा होत वजीर ।
फरजी साह न हुइ सकै, गति टेढ़ी तासीर ।।

अर्थ: कविवर रहीम कहते हैं कि शतरंज के खेल में सीधी चाल चलते हुए प्यादा वजीर बन जाता है पर टेढ़ी चाल के कारण घोड़े को यह सम्मान नहीं मिलता अतः व्यक्ति को सत्य एवं सदाचार की राह पर अग्रसर रहना चाहिए ।


आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।

अर्थ: तुलसी दास जी कहते हैं कि जिस स्थान पर लोग आपके जाने से प्रसन्न न होवें और जहाँ लोगो कि आँखों में आपके लिए प्रेम अथवा स्नेह ना हो ऐसे स्थान पर भले ही धन की कितनी भी वर्षा ही क्यूँ ना हो रही हो आपको वहां नहीं जाना चाहिए ।


रहिमन वहां न जाइये, जहां कपट को हेत ।
हम तन ढारत ढेकुली, संचित अपनी खेत ।।

अर्थ: कविवर रहीम कहते हैं कि उस स्थान पर बिल्कुल न जायें जहां कपट होने की संभावना हो। कपटी आदमी हमारे शरीर के खून को पानी की तरह चूस कर अपना खेत जोतता है/अपना स्वार्थ सिद्ध करता है।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।


प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।

अर्थ: प्रेम न तो किसी खेत अथवा क्यारी में उगता है और न ही यह किसी बाज़ार में बिकता है, यह तो वो खजाना है जो यदि किसी के मन को भा गया तो भले ही वह व्यक्ति राजा हो या कोई प्रजा, वो अपने प्राणों के मोल पर भी इसे प्राप्त करने के लिए तत्पर रहता है ।


माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर ॥

अर्थ: संत कबीर जी कहते हैं कि हे मनुष्य तुझे एक युग बीत गया इस माला को फेरते हुए परन्तु फिर भी तेरे मन में व्याप्त इस दुविधा का हल तुझे नहीं मिला, हे मनुष्य तू इस हाथ की माला को फेक कर एक बार मन की माला का जाप कर तुझे सभी दुविधा का हल स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा ।


दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥


तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय



साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥



जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप।

जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप॥

हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय।
बहुतक मूरख चलि गए, पारख लिया उठाय ।


खीरा सिर ते काटि के, मलिय लौंन लगाय.

रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय.


अर्थ : खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है. रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है.




रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥







Friday, 20 October 2017

Wednesday, 18 October 2017

पटाखे

                                     हवा  मै और जहर नही फैलाउंगा      

प्राकृति से नाता जोड़ो 
पटाखो से नाता तोड़ो 
पटाखे हवा में जहर फैलाते है 
प्राकृति माता को रुलाते है                                                 (original)
हमारी उम्रे तोड़ कम कर जाते है 

फर्क नही करते बच्चे,बूढ़े ,जवानो  में 
सब को एक सा बीमार बनाते है 
दीवाळी  से इनका नही कोई नाता है 
फिर भी मूढ़ मानव  इनको जलाता है 
अपनी हवा मै जहर फैलता है
फिर भी समझदार कहलवाता है 
        मैं हँसूगा या रोँऊगा अब ,कह नही सकता 
         मैं  पटाखे नही जलाउंगा 
         हवा  मै और जहर नही फैलाउंगा 
प्राकृति माँ को और नही रुलाउंगा 
         मैं  पटाखे नही जलाउंगा 

 

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Thursday, 5 October 2017

पंच महापुरुष योग


                   पंच महापुरुष योग 


 ज्योतिष में ग्रहों के सम्बन्ध ,स्थान और स्थिति से बहुत  तरह के शुभ और अशुभ योग बनते हैं. इनमे पांच तरह के योग बहुत  अधिक  महत्वपूर्ण हैं, जिनको "पंचमहापुरुष योग" कहा जाता है. ज्योतिष में पांच ग्रहों से ही जीवनचर्या,जीवन केसा बीतेगा  निर्धारित होता  है, और क्योकि  ये योग इन्ही पांच ग्रहों से बनते हैं अतः ये महत्वपूर्ण माने जाते हैं, वो पांच ग्रह हैं-  बुध, शुक्र ,मंगल ,बृहस्पति,और शनि ,,  . इनके बारे में  विस्तृत उल्लेख वराहमिहिर की पुस्तक "वृहज्जातक" में सबसेप्रमाणिक रूप से पाया जाता है. इन ग्रहों की विशेष स्थिति से पंच -महापुरुष योग बनता है,जो व्यक्ति को विशेष बना देता है.






ऐसे योग कुंडली में जब आ जाते हैं व्यक्ति को महान व  महापुरुष बना देते हैं पंच महापुरुष योगो  में से कोई एक योग भी  अगर आपकी कुंडली में आ जाता है तो वह आपकी किस्मत बदल सकता है और अगर पंचमहापुरुष योग में से कोई एक योग भी आपकी कुंडली में है तो हमें किस प्रकार की सावधानियां बरतनी चाहिए ,किस तरह के बातो का ध्यान  रखना चाहिए। 
यह कुछ  ऐसे योग  हैं जो कुंडली में जब आ जाते हैं या बन जाते हैं विभिन्न प्रकार की ग्रहों की परिस्थितियों के कारण तो व्यक्ति को महान वा  महापुरुष बना देते हैं 
कुंडली में ग्रहों के संबंध और विभिन्न भावों में स्थिति से शुभ व अशुभ योग बनते हैं यह पांच प्रकार के योग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं इसलिए ने पंचमहापुरुष योग कहा जाता है

सूर्य व चंद्र  प्राण प्रवाहित करते हैं बाकि  के ग्रह मंगल, बृहस्पति ,शनि ,शुक्र ,व ,बुध यह व्यक्ति के जीवन की दिनचर्या या व्यक्ति का जीवन कैसा होगा इस बात को निश्चित  करते हैं , कि व्यक्ति  किस रास्ते पर चलेगा यह भी यही 5 ग्रह ही निश्चित  करते हैं आचार्य  वराह मिहिर की पुस्तकें   वृहद पराशर होरा शास्त्र वा  वृहज्जातक ,इन पुस्तकों में इन योगो का स्पष्ट उल्लेख है। 

1 ,,,,,,,,, सबसे पहले योग को कहते हंस योग
  
हंस पक्षियों में सबसे ज्यादा विद्वान व पवित्र माना जाता है क्योंकि वह दूध और पानी  को अलग करने की क्षमता रखता है ,दूध और पानी को अलग कर देता है, दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है
 बृहस्पति जब कर्क, धनु या मीन राशि में हो तो यह योग बनता है पंचमहापुरुष योग बनेगा इस योग के  बनने से व्यक्ति तपस्वी विद्वान व ज्ञानी होता है  ऐसे लोग जिनकी कुंडली में हंस योग होता है ऐसे लोग बिना प्रयास के ही नाम ,यश व सम्मान पा जाते हैं ऐसे लोग राजनीति कानून व शिक्षा क्षेत्र व धर्म के क्षेत्र में सफल होते हैं ऐसे लोग जहां जाते हैं वहीं उन की  जय जयकार होने लगती है यदि बृहस्पति   कर्क या धनु  या मीन राशि में हो तो व्यक्ति का राज योग बनता है। 
ऐसे योग वालो  को खाने की आदत होती है व अहंकार  होता है इन्हें अपने अहंकार को कंट्रोल करना चाहिए अहंकार की आदत भी कूट-कूट कर भरी जाती है अगर आपकी कुंडली में हंस महायोग है तो अपने अहंकार  की आदत से बचिए




2 ,,,,,,दूसरा योग होता है शश योग 

यह शनि से बनता है यदि शनि तुला ,मकर या  कुंभ राशि में हो तो यह योग  बनता है 7 10 अथवा 11 नंबर की राशि में है तो यह योग बनता 
- अगर यह योग कुंडली में है तो व्यक्ति शासक होता है और नेतृत्व वाला होता है ,छोटी जगह पर जन्म लेकर भी सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाते हैं इनकी मेहनत करने की व समय पहचानने की क्षमता अद्भुत होती है ,बहुत मेहनती होते हैं, किस  समय कौन सा काम करना है इन  से बेहतर कोई नहीं जानता यदि कुंडली में शश महायोग हो तो व्यक्ति जमीन से निकल कर आसमान में पहुंच जाता है। 
ऐसे योग वाले लोग अक्सर नशो में डूब जाते हैं ,नशे में डूबने   से बचना है नहीं तो इनका जीवन का बहुत पढ़ाई व  सारी मेहनत बेकार हो जाती है और व्यसन से भी बचना है अथवा यह योग नष्ट हो जाएगा निष्फल हो जाएगा हर प्रकार के बुरे कार्य से बचना होगा नहीं तो यह योग नष्ट हो जाएगा तो वह फल नहीं देगा जो इसे देना चाहिए


3 ,,,,,तीसरे योग  को बोलते मालव्य योग  

 यह योग बनता है शुक्र से,,  शुक्र यदि मीन, वृषभ,या  तुला राशि में हो तो यह मालव्य योग बनता है। मालव्य नमक राजयोग कुंडली में अगर   हो  तो  व्यक्ति को अपार वैभव  व विलास  मिलता है शुक्र यदि मीन वृष या  तुला राशि में हो 2 ,7 अथवा 12वी  राशि में हो तो यह योग बनता है ग्लैमर उसके आगे पीछे नाचने लगता है वह ग्लैमर की दुनिया का बादशाह बन जाता है।  ऐसे योग वाले व्यक्तियों को कहा जाता है कि born with silver spoon in his mouth   ऐसे लोगों को सुख समृद्धि धन व आकर्षण  बल प्राप्त होता है।  जितनी भी भौतिक संपनता है मेटेरियल प्रोस्पेरिटी है वह उनके पास बहुत अधिक रहती है।  इस योग वाले लोग फिल्म ,मीडिया ,कला ,सौंदर्य, चिकित्सा के क्षेत्र में होते हैं खूब सफलता पाते हैं ग्लैमर इनके पीछे भागता है। यदि ऐसे योग वाले लोग  ग्लैमर के क्षेत्र में नहीं भी होंगे वो  जिस भी क्षेत्र में होंगे ग्लैमर इनके पीछे पीछे भागने लग पड़ेगा।
 इनको विलास कि व धन की बर्बादी से बचना चाहिए क्योंकि यदि भोग-विलास में डूब जाएंगे कोई अपने शरीर  व धन को बर्बाद कर लेंगे। ऐसे बर्बादी करते हैं कि कितना भी धन  तो फिर इनके पास से दूर चला जाता है लक्ष्मी मां नाराज हो जाती है। 


4 ,,,,,रूचक योग

 अगर मंगल मकर, मेष या वृश्चिक राशि में हो तो रूचक योग बनता है 1 ,8 ,10  नंबर में हो तो यह योग बनता है अगर यह योग हो तो यह व्यक्ति को बहुत अधिक पराक्रमी  व साहसी बना देता है ,,,,,, कैसी भी कठिन से कठिन परिस्थितियां क्यों ना हो अपने पराक्रम से उनसे पार पा जाता है भूमि ,संपत्ति व  शक्ति का अपार सुख मिलता है प्रशासन में सेना में पुलिस में ऐसे  योग वाले लोग बहुत अधिक पाए जाते हैं  यह योग बहुत अच्छा सर्जन भी बना देता है। शातिर होते है 
  इस योग वाले लोग बहुत अधिक क्रोधी भी होते हैं , विध्वंसक  प्रवृती  पर नियंत्रण रखना चाहिए क्रोध वा हिंसात्मक प्रवृति पर नियंत्रण रखना चाहिए ,यह दोनों बातें जीवन को बहुत बुरी तरह से नुकसान पहुंचा सकती है। 

5 ,,,,भद्र योग
बुध यदि कन्या या मिथुन राशि में हो तो भद्र योग बनता है धनवान व बुद्धिमान बनाता है आपकी कुंडली में यह योग होता है खूबसूरती का वाणी का बुद्धि का और चतुराई का वरदान मिलता है उनकी हर चीज के अंदर आपको perfection ,,,की आप कोई कमी न निकल पाएंगे ,,,,मिलेगी।  बोलने की क्षमता इनकी बहुत ताकतवर होती है, हर चीज को  प्रेजेंट  बहुत  बढ़िया  ढंग से करते है।  ऐसे  लोग  अभिव्यक्ति के क्षेत्र में पाए जाते हैं वाणी के क्षेत्र में  पेंटिंग ,कलाकारी पॉलिटिक्स आर्थिक क्षेत्रों में भी उच्च पदों पर पाए जाते हैं बन जाते हैं टॉप लेवल के मैनेजर भी बन जाते हैं।  यदि यह भद्र योग बन जाता है तो  कुंडली में उंचाइयों पैदा कर देता है ,,,,कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते की हर  काम को भद्र योग वाले  व्यक्तिइतने  सिस्टेमेटिक कर देता है प्रेज़ेंटेशन  करने का तरीका ,बोलने का तरीका बिल्कुल सिस्टेमेटिक  व खूबसूरत कर देता है।  ऐसे लोगो में ऊर्जा बहुत होती है ,जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती है। ऐसे योग वाले लोग लंबे  समय तक जवान बने रहते हैं। 
अगर इस योग में जरा सी भी गड़बड़ी आ गई तो ऐसे लोग अपनी बुद्धि का दुरुपयोग कर लेते हैं, , अपने ताकतवर दिमाग से दूसरों को बेवकूफ बनाकर उनसे पैसे हड़प लेंगे। किसी को भी बेवकूफ बना लेंगे अपना काम निकलवा लेंगे। ऐसे योग वाले लोग  किसी को भी बड़ी आसानी से बेवकूफ बना सकते हैं ऐसे योग वालों को अपनी बुद्धि का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। 


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Monday, 11 September 2017

Remember such Hikes will break our spine


          Remember such Hikes will break our spine

                                                                                                        Dedicated to the Parents of HRMS

Message message we played a lot
Situation is now getting really hot

Leave comfort zone come out and face
OR be ready to lose the race

They hiked Fee ,we did protest
In protest everybody did his her best

All played their role the best    optional
all / are doing their /Played the role /well, best optional

Victory was near, far was lose
At this some opt the Mode of snooze

Be  together  and  Be Unite
Only then we can win the fight

Remember hike will  break us all optional

Remember such Hikes will break our spine
May be  first  your / his / her or  mine


Astro-scientist,teacher,writer
ritesh nagi (c.d.&c) my originals
riteshnagi.blogspot.com 10/9/2017











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