इत्तिहास परीक्षा थी उस दिन (from net) best ever
चिंता से हृदय धड़कता था जू
जब से जागा था तब से
मेरा बायां नैन फड़कता
था
जो उत्तर मेने याद किये ,
उसमे से आधे ही याद हुए ,
वो भी स्कूल पहुचने तक
यादो में ही बर्बाद हुए
जो सीट दिखाई दी खाली
उस पर ही जा कर बैठ गिया
था एक नरीक्षक कमरे में
वो आया झाल्या और ऐठा
रे रे तेरा है ध्यान किधर
कर के क्यों आया देरी है
यहाँ कहां तू आ बैठा
उठ जा ये कुर्सी मेरी
पर्चे पर जब मेरी नजर पड़ी
तो सारा बदन पसीना था
फिर भी पर्चे डरा नही
जो ये मेरा ही सीना था
कॉपी के बरगद पर मेने
फिर कलम कुल्हाड़ा दे मारा
घंटे भर के भीतर ही
कर डाला प्रश्नो का वारा न्यारा
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अकबर का बेटा था बाबर
जो वायुयान से आया था
उसने ही हिन्द महासागर
अमरीका से मंगवाया था
गौतम जो बुध हुए जा कर
गांधी जी के चेले थे
बचपन में दोनों नेहरू के संग
आंखमिचौली खेले थे
होटल का मालिक था अशोक
जो ताजमहल में रहता था
ओ अंग्रेजो भारत छोड़ो
वो लाल किले कहता था
झांसा दे जाती थी सबको
ऐसी थी जहंसी की रानी
अक्सर अशोक के होटल में
खाया करती थी बिरयानी
ऐसे ही चुन -चुन कर
प्रश्नों के पापड़ बेल दिए
इतिहास के यह ऊँचे पहाड़
टीचर की और धकेल दिए
टीचर जी बेचारे इस ऊंचाई तक किया चढ़ पाते
भला यह सब क्या समझ पाते
लाचार पुराने चश्मे से
इतहास नया क्या पढ़ पाते
टीचर जी की समझ के बहार
इत्तिहासो का भूगोल हुआ
अब ऐसे में फिर क्या होना था
मेरा नंबर तो गोल हुआ
धन्यवाद
original , first time on net ,self composed
आधुनिकता
आधुनिकता की आड़ में चला भयानक खेल
सबसे ज्यादा बन रही बच्चो ,बूढो की रेल
अमरीका ,चीन ने किया वार पेप्सी
पिज़ा ,चाउमिन ,बर्गर आगे मेरा देश गया हे हार
to be continued
परीक्षा
घर में कर्फु (घरबंदी ) लगने वाला है
अगले सप्ताह से परीक्षाये है
बाबूजी आज सुबह ही
नया बेंत खरीद के लाये है
बेंत की नजर है मुझ पर
इसे मेरे खून की होगी प्यास (कर रहा है अट्हास )
बाबू जी पूछेंगे प्रश्न कोन से
लगाने लग गया हु कयास
बाबूजी ने आते ही किया प्रश्न
कैसे हो तुम बरखुरदार
सारे पाठ कर लिए याद या
छोड़ दिए है दो चार
to be continued
30.9.2015
i wrote this poem on 30/9/2015 for my daughter Aastha (original)
बंदर पेड़ पर कूद रहा था
खा रहा था फल
इतने में ही आ निकला
राजा जी का दल
सभी जानवर आये थे
गजराज नही थे आये
यही सोच सोच कर
राजा जी घबराये
लोमड़ी बोली भालू मामा
इस बंदर को रोको
राजा जी को गुस्सा आये
उससे पहले इस को टोको
इतने में ही गजराज ने
एक चिंगाड़ मारी
सभी जानवर नो दो ग्यारह हो गए
अब थी राजा जी की बारी
गजराज बोले सभी जानवर
मेरे पास आओ
समस्या बहुत गंभीर है
मिल जुल कर उसे सुलजाओ
मानव वनो काट रहा
कर रहा हमे आनाथ
आयो मिल कर शहर चले
इनको बताये यथार्थ
to be continued
हवा मै और जहर नही फैलाउंगा
प्राकृति से नाता जोड़ो
पटाखो से नाता तोड़ो
पटाखे हवा में जहर फैलाते है
प्राकृति माता को रुलाते है (original)
हमारी उम्रे तोड़ कम कर जाते है
फर्क नही करते बच्चे,बूढ़े ,जवानो में
सब को एक सा बीमार बनाते है
दीवाळी से इनका नही कोई नाता है
फिर भी मूढ़ मानव इनको जलाता है
अपनी हवा मै जहर फैलता है
फिर भी समझदार कहलवाता है
मैं हँसूगा या रोँऊगा अब ,कह नही सकता
मैं पटाखे नही जलाउंगा
हवा मै और जहर नही फैलाउंगा
प्राकृति माँ को और नही रुलाउंगा
मैं पटाखे नही जलाउंगा